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________________ आचारमणिमञ्जूषा टीका, अध्यय ८ गा. ६४ टीका-'से तारिसे इत्यादि। तादृशः पूर्वोक्तगुणविशिष्टः, दुःखसहा अनुकूलपतिकूलपरीषहजिष्णुः, जितेन्द्रियः रागद्वेषरहितः, श्रुतेन युक्तः शास्त्रमर्माभिज्ञः अममममत्वरहितः, अकिञ्चनः-द्रव्यभावपरिग्रहशून्यः, स साधुः कर्मघने कर्मघन इवेति कर्मघनः, तस्मिन् , पुरुषव्याघ्रवत्समासः, आवरकत्वेन घनसादृश्यं, मेघसदृशे ज्ञानावरणीयादिकर्मणीत्यर्थः अपगते प्रक्षीणे सति, कृत्स्नाभ्रपुटापगमे सकलजलमण्डला. चरणक्षये सति चन्द्रमा इव विराजते शोभते, अनन्तविमलकेवलज्ञानप्रकाशादित्यर्थः। _ 'दुक्खसहे' इत्यनेन साधोः प्राणात्ययसंकटेऽपि प्रवचनाचलत्वं, 'जिइंदिए' इत्यनेनाचारवत्वं, 'मुएण जुत्ते' इत्यनेन ज्ञानवत्त्वं, 'अममे' इत्यनेनैहिकराजसंमानादि,-पारत्रिक-दिव्यदेवद्धर्यादिप्राप्तिलक्षणपौद्गलिकमुखाभिलाषनिरपेक्षत्वम्, ___'से तारिसे' इत्यादि । पूर्वोक्तगुणविशिष्ट, अनुकूल-प्रतिकूल परीषहों को जीतने वाले, रागद्वेष रहित, जितेन्द्रिय, आगमों के मर्म के ज्ञाता, ममत्वरहित, बाह्याभ्यन्तर परिग्रह के त्यागी साधु, मेघ के समान आवरण करने वाले कर्मों का क्षय होने पर केवल ज्ञान रूपी प्रकाश से शोभित होते हैं। जैसे मेघ का पटल हटने से चन्द्रमा शोभायमान होता है। 'दुक्खसहे' इस पद से यह सूचित किया है कि-प्राण जाने पर भी जिनप्रवचन से चलायमान न होना चाहिए । 'जिइंदिए' पद से आचार, सुरण जुत्ते' पद से ज्ञान, 'अममे पदसे इहलोकसम्बन्धी राजसम्मान आदि और परलोकसम्बधी देवता आदि की ऋद्धि वगैरह पौगलिक सुखों की अभिलाषा का त्याग; और 'अकिंचणे' पदसे, जैसे से तारिसे. त्या पूर्वाजतगुष्यविशिष्ट, अनुग-प्रतिष परीषडाने જીતનાર, રાગદ્વેષ રહિત, જિતેન્દ્રિય, આગમના મર્મના જ્ઞાતા, મમત્વરહિત, બાહ્યાભ્યા ન્તર પરિગ્રહના ત્યાગી, એવા સાધુ મેઘની પેઠે આવરણ કરનારાં કમેને ક્ષય થતાં કેવળજ્ઞાનરૂપી પ્રકાશથી ભિત બને છે, કે જેમ મેઘને પડદો હટી જવાથી ચંદ્રમાં लायमान मन छे. दुःखसहे ५४थी मेम सूथित यु छे - १५ wai પણ જિન-પ્રવચનથી ચલાયમાન થવું ન જોઈએ વિવિજ શબ્દથી આચાર, सुरण जुत्ते ५४थी ज्ञान, अममे पथी Uswधी २००८ समान भने ५२४સંબંધી દેવતા આદિની અદ્ધિ વગેરે પૌગલિક સુખની અભિલાષાને ત્યાગ, અને શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨
SR No.006368
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages287
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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