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________________ १३२ श्री दशवैकालिकसूत्रे छाया-कतराणि अष्टौ सूक्ष्माणि यानि पृच्छेत् संयतः । इमानि तानि मेधावी आचक्षीत विचक्षणः ॥ १४ ॥ टीका-'कयराइ' इत्यादि कतराणि-कानि अष्टौ सूक्ष्माणि-मूक्ष्मशब्दवाच्यानि इति यानि विषयीकृत्य संयतः दयाधिकाराभिलाषी पृच्छेत् । विचक्षणः धर्मोपदेशकुशलः मेधावी स्थिरमज्ञः इमानिन्वक्ष्यमाणानि तानि-सूक्ष्माणि आचक्षीत-कथयेत् । 'संजए' इतिपदेन प्राणियतनापरत्वं सूचितम् , “मेहावी" इत्यनेन धारणाशक्तिसंपन्नेनैव पूर्वापरविरोधपरिहारपूर्वकं व्याख्यातुं शक्यते । 'विअक्खणो' इत्यनेन द्रव्य क्षेत्रकालभावज्ञस्यैव व्याख्यानं श्रोतृणां लाभाय भवतीति प्रतीयते ॥१४॥ अष्टानां सूक्ष्माणां नामानि निर्दिशति-'सिणेहं' इत्यादिमूलम्-सिंणेहं पुप्फैसुहमं च पाणुत्तिनं तहेव य । पणगं बीयहरियं चं अंडसुहमंच" अॅट्रमं ॥१५॥! 'कयराई' इत्यादि । दया पालन का अभिलाषी पूछे कि-हे गुरु महाराज ! वे आठ सूक्ष्म कौन कौन हैं, ? तब धर्मोपदेश देने में कुशल स्थिर प्रज्ञावाले गुरुमहाराज आगे कहे जाने वाले आठ सूक्ष्म बतावें। 'संजए'-पदसे प्राणियों की यतना में तत्परता सूचित की गई है। 'मेहावी' शब्दसे यह प्रगट होता है कि-जिसमें धारणाशक्ति होती है वही पूर्वापरविरोधरहित ब्याख्यान कर सकता है । 'वियक्खणो' शब्द से यह प्रगट होता है कि जो द्रव्य क्षेत्र काल भाव का ज्ञाता होता है उसी के व्याख्यान से श्रोताओं को लाभ हो सकता है ॥१४॥ कयराई. त्यात या पासनी मलिनापी छे 3-3 शु३ मारा ! એ આઠ સૂમે કયા કયા છે ! ત્યારે ધર્મોપદેશ આપવામાં કુશળ એવા સ્થિર પ્રજ્ઞાવાળા ગુરૂમહારાજ આગળ કહેવામાં આવનારાં આઠ સૂમે બતાવે છે. संजए ५४थी प्राणी-मानी यतनामी तत्परता सूचित ४१ छ मेहावी શબ્દથી એમ પ્રકટ થાય છે કે-જેનામાં થાણુ શક્તિ હોય છે તે જ પૂર્વાપર विरोध रहित व्यामान री छे. वियक्खणा श०४थी मेम थाय छ દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાળ લાવને જ્ઞાતા હોય છે તેના વ્યાખ્યાનથી શ્રોતાઓને લાભ था . (१४) શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૨
SR No.006368
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages287
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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