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________________ अध्ययन ५ उ. १ गा ९२-९४ कायोत्सर्गादौ चिन्तनप्रकारः ____३८७ लोगस्य उज्जोयगरे" इत्यादि संपूर्ण जिणसंथव-(जिन भगवान् की स्तुती) करित्ता = करके तथा सज्झायं = सज्झाय-कमसे कम मूलशास्त्रकी पांच गाथाओंका स्वाध्याय पहवित्ता = पढकर खणं = क्षणभर जितने में दूसरे मुनिराज भी शामिल हो जाते हैं। इस अभिप्राय से कुछ देर वीसमेज्ज = विश्राम करे ॥१३॥ टीका-'णमुक्कारेण' इत्यादि । मुनिः संयतः नमस्कारेण = णमो अरिहंताणं' इत्युच्चारणलक्षणेन कायोत्सर्गमिति शेषः, पारयित्वा = समाप्य जिनसंस्तवं "लोगस्स उज्जोयगरे" इत्यादिलक्षणं सम्पूर्णं कृत्वा = विधाय स्वाध्यायं = धम्मो मंगलमुक्किट" इत्यादिगाथापञ्चकादन्यून मूलशास्त्रं पठित्वा क्षणं = क्षणमात्रं 'मण्डलेऽन्यमुनयोऽपि समा गत्य संमिलिता भवन्तु' इत्याशयेन विश्रम्येत् विश्रान्ति कुर्यात् ॥९३॥ मूलम्-वीसमंतो इमं चिंते हियमढे लाभमडिओ । १० ११ १२ १३ जइ मे अणुग्गहं कुज्जा साहु हुज्जा तारिओ ॥९॥ विश्राम्यन् मुनिः किं कुर्यात् ? इत्याह-- छाया-विश्राम्यन (मुनिः) इदं चिन्तयेत् हितमर्थ लाभार्थिकः । यदि मम अनुग्रहं कुर्यात साधुर्भवामि तारितः ॥१४॥ विश्राम के समय मुनि क्या करे सो बताते हैं सान्वयार्थः-वीसमंतो = विश्राम करता हुआ लाभमट्ठिओ = कर्मनिर्जराका अभिलाषी साधु इमं = इस इसी गाथा के उत्तरार्द्ध में कहे जानेवाले-प्रकार हियं = मोक्षप्राप्ति रूप हितके करनेवाले अटुं = भावी प्रयोजनको चिते = चिन्तन करे, जैसे जइ = यदिअगर साह = कोई भी मुनिराज मे = मेरे ऊपर अणुग्गहं कुज्जा = अनुग्रह करें अर्थात मेरे भागके आहारमें से कुछ आहार ले ले तो में तारिओ हुज्जा = इस संसार समुद्रको तैर जाऊं पार कर जाऊं ॥९४॥ 'णमुक्कारेण' इत्यादि । मुनि ‘णमो अरिहंताणं' पदका उच्चारण करके कायोत्सर्ग को समाप्त करे । फिर 'लोगस्स उज्जोयगरे' इत्यादि जिन संस्तव पूर्ण करके 'धम्मो मंगलमुक्किट। इत्यादि कमसे कम पांच गाथाओंकी मूल शास्त्रको सज्झाय करके थोड़ी देर विश्राम करे कि जिससे अन्य मुनि भी आकर शामिल हो जावें ॥९३॥ विश्राम करता हुआ मुनि क्या करे सो कहते हैं-'वीसमंतो' इत्यादि । मक्कारेण त्या मुनि णमो अरिहंताणं पहनु यार ४शन जयसमन समास २, ५छी लोगस्स उज्जोयगरे त्यादि लिनसंत पूर्ण प्रशन धम्मो मंगलमुस्किई ઈયરિ ઓછામાં ઓછી પાંચ ગાથાઓની મૂળશાસ્ત્રની સજઝાય કરો થોડીવાર વિશ્રામ કરે જેથી અન્ય મુનિ પણ આવીને શામિલ થઈ જાય (૯૩) विश्राम ४२तां भुनि शु. ३ ते ४ छे-चीसमतो. त्यादि. શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર: ૧
SR No.006367
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages480
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size27 MB
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