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श्रोदशवैकालिकसूत्रे बहुशु के बह्वार्द्रस्य संहरणम् ।
[३] 'आर्दै शुष्कस्ये'-ति तृतीयभङ्गस्य चतुर्भङ्गी यथा -
(१) अल्पाइँऽल्पशुष्कस्य (२) अल्पार्टेबहुशुष्कस्य, (३) बह्वाऽल्पशुष्कस्य, (४) बहार्दै बहुशुष्कस्य संहरणम् ।
[४] 'आर्दै आर्द्रस्ये'-ति चतुर्थभङ्गस्य चतुर्भङ्गो यथा --
(१) अल्पार्टेड पार्द्रस्य, (२ अल्पा-बहादस्य, (३) वहाऽल्पास्य, (४) बहा बहाद्देस्य संहरणम् ।
आमु पूर्वोक्तभङ्गीषु प्रत्येकचतुर्भङ्गयाः 'अल्पशुष्केऽल्पशुष्कस्य' बहुशुष्केऽल्पशुष्कस्ये-त्यादिरूपौ प्रथम-तृतीयभङ्गौ कल्प्यों शेषावकल्प्यौ, तथाग्रहणे पात्रोत्थापनादिना दातुः कष्ट पात्रस्फुटन-तद्तवस्तुविकरणाप्रीत्यादिसम्भवात् थोड़े गोलेका, (४) बहुत सूखेमें बहुन गीलेका ।
[३] 'गीलेमें सूखेका' इस तीसरे भंग ही चौभंगी
(१) थोड़े गीलेमें थोड़े सूखेका, (२) थोड़े गीलेमें बहुत सुखेका, (३) बहुत गीलेमें थोड़े सूखेका (४) बहुत गाले में बहुत सूखेका ।
[४] 'गीलेमें गीलेका' इस चौथे भंगकी चौभंगी--
(१) थोड़े गोलेमें थोड़े गीलका (२) थोड़े गीलेमें बहुत गीलेका । (३) बहुत गोलेमें थोड़े गीले का, (४) बहुत गीलेमें बहुत गीलेका ।
इन चारों चौमंगियों में से 'थोड़ा सूखेमें थोड़ा सूखा मिलाना' और बहुत सूखेमें थोड़ा सूखा मिलाना' ये पहले और तीसरे भंग ग्राह्य हैं । दूसरे और चौथे भंग ग्राह्य नहीं हैं। इस प्रकारके ग्रहण करने से वर्तन उठानेके कारण दाता को कष्ट, बर्तनका फूटजाना, और वस्तुका
(१) था। सूमा था सीमानु, (२) था। सूमा मसालानु (3) मई सूमा છેડા લલાનું, (૪) બહુ સૂકામાં બહુ લીલાનું.
[3] alani सूानु' से श्री मनी योनी
(१) थे। बीमा थे। सूनु, (२) थे। clari महु सूडानु, (3) म सीमामा था। सूत्रानु, (४) मई सीमामा म सूत्रानु
[४] सीतामi alalनु' से याथी यौम
(१) यौ31 alawi थे।31 सीसानु, (२) 231 alawi म वासानु. (3) मर ale मा योt alalनु, (४) u alenwi मई तासान'.
આ ચાર ચૌભંગીઓમાંથી થોડા સૂકામાં થોડું સૂકું મેળવવું” અને “બહુ સૂકામાં થે ડું સૂકું મેળવવું” એ પહેલે અને ત્રીજો એ બે ભાંગા ગ્રાહ્યા છે. બીજા અને ચોથા ભાંગ ગ્રાહ્યા નથી. એ પ્રમાણે ગ્રહણ કરવાથી વાસણ ઉપાડવાને કારણે દાતાને કષ્ટ, વાસણ ફૂટી જવું અને વસ્તુ વેરાઈ–ઢોળાઈ જવી, અને અપ્રીતિ થવી આદિ દૂષણ થાય છે, જેમકે કઈ
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧