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श्रीदशवैकालिकसूत्रे परिमाणसामान्यस्य द्रोणशब्दार्थे चतुराढकात्मक परिमाणविशेषे तादाम्यसम्बन्धेन (अभेदसम्बन्धेन) अन्वये सति द्रोणाभिन्न परिमाणमिति बोधः, ततश्च प्रत्ययार्थपरिमाणस्य प. रिच्छेद्य-परिच्छेदकभावेन ब्रीहिपदार्थेऽन्वये द्रोणाभिन्नं यत्परिमाणं तत्परिच्छिन्नो (तत्परिमितो) व्रीहिरिति बोधः, अत्र प्रत्ययार्थस्य ब्रोहावन्वयप्रदर्शनं प्रकृतानुपयोग्यपि प्रसअतः कृतम् । यद्वा-यथा 'उपाध्यायो मुनि'-रित्यत्रोपाध्यायशब्दार्थे उपाध्यायपदधारिणि मुनिविशेषे मुनिशब्दार्थस्य मुनिसामान्यस्य तादात्म्यसम्बन्धेन (अभेदसम्बन्धेन) अन्वयः, तथा च-उपाध्यायभिन्नो मुनिरितिबोधः, तत्र विशेषत्वेन विवक्षितपदार्थ उपाध्यायपदधारिणि मुनिविशेषे मुनिशब्दार्थस्य मुनित्वस्य सत्त्वादुभयोः पदार्थयोः सामान्ययह कहा गया है कि 'व्याप्य-व्यापक भाव जिनमें होता है उन्हींमें सामान्यविशेषभाव पाया जाता है जैसे "द्रोणो व्रीहिः,' इस वाक्यमें प्रथमा विभक्ति का अर्थ परिमाण-सामान्य है इस-परिमाणसामान्यका द्रोण शब्दके अर्थ चार आढकरूप परिमाण-विशेषमें अभेद सम्बन्धके द्वारा अन्वय होता है। इस अन्वयसे "चार आढकरूप परिमाण" (एक प्रकार का तौल) ऐसा बोध होता है। उस प्रत्ययार्थ परिमाण-सामान्यको परिच्छेद्य-परिच्छेदक-भाव सम्बन्धसे व्रीहि पदार्थमें अन्वय होनेसे "उस परिमाणसे परिमित (मापा हुआ) बोहि" ऐसा बोध होता है । यहां व्रीहिमें अन्वय प्रसंगवश दिखलाया गया है । अथवा
"उपाध्यायो मुनिः" यहाँ उपाध्याय शब्द का अर्थ है उपाध्यायपदधारी मुनिविशेष (१), तथा मुनि शब्दका अर्थ मुनिसामान्य (२), अतः जो उपाध्याय हैं वही मुनि है, अर्थात् मुनिसे अन्य उपाध्याय नहीं है इसलिए उपाध्याय शब्दार्थको मुनि शब्दार्थके साथ अभेद सम्बन्धसे अन्वय होता है तो 'उपाध्यायसे अभिन्न मुनि' ऐसा बोध होता है । यहां विशेष याने उपाध्यायपदधारी ધર્મ પણ મળી આવે. તેથી કરીને એમ કહેવામાં આવ્યું છે કે જેમાં વ્યાપ્ય-વ્યાપકભાવ डाय छ तमा सामान्य विशेष-भाव भजी आवे छे.' २म द्रोणो व्रीहिः ये पायम પ્રથમ વિભક્તિને અર્થ પરિમાણુ-સામાન્ય છે. એ પરિમાણ-સામાન્યને, દ્રોણ શબ્દના અર્થ ચાર આઢક રૂપ પરિમાણ-વિશેષમાં અભેદ સંબંધના દ્વારા અન્વય થાય છે. એ અન્વયથી " या२ मा ३५ परिमाण " (मे प्रारने त) मे मो थाय छे. ये प्रत्ययाथપરિમાણુ–સામાન્ય પરિબેઘ-પરિચ્છેદ-ભાવ સંબંધથી ગ્રહિ પદાર્થમાં અન્વય થવાથી
એ પરિમાણથી પરિમિત (માપેલા) વ્રીહિ ” એ બંધ થાય છે. અહીં વ્રીહિમાં અન્વય પ્રસંગવશ બનાવવામાં આવ્યો છે. અથવા– ___ उपाध्यायो मुनिः सभी उपाध्याय शहने। २५ छ-उपाध्याय पधारी भुनि-विशेष (૧), તથા મુનિ શબ્દને અર્થ છે મુનિ-સામાન્ય (૨), એટલે તે ઉપાધ્યાય છે તેજ મુનિ છે, અર્થાત્ મુનિથી જૂદે ઉપાધ્યાય નથી. એથી કરીને ઉપાધ્યાય શબ્દાર્થને મુનિ શબ્દા ઈની સાથે અભેદ સંબંધથી અવય થાય છે, અને તેથી “ઉપાધ્યાયથી અભિન્ન મુનિએ બંધ થાય છે. એમાં વિશેષ કરીને ઉપાધ્યાય-પદધારી ( વ્યક્તિ)માં મુનિના સામાન્ય ધર્મ
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્રઃ ૧