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टीकाकारका यह कार्य परम प्रशंसनीय हैं । इस सूत्रको मध्यस्थ भावसे पढने वालोंको परम लाभकी प्राप्ति होगी । क्या कहें श्रावकों (गृहस्थों ) का तो यह सूत्र सर्वस्व ही हैं, अतः टोकाकारको कोटिशः धन्यवाद दिया जाता हैं, जिन्हींने अत्यन्त परिश्रमसे जैन जनताके ऊपर असीम उपकार किया हैं। इसमें श्रावकके बारह नियम प्रत्येक पुरुषके पढने योग्य है जिनके प्रभावसे अथवा यथायोग्य ग्रहण करनेसे आत्मा मोक्षका अधिकारी होता है । तथा भवितव्यतावाद और पुरुषकार पराक्रमवाद हरएकको अवश्य देखना चाहिये । कहांतक कहें इस टीकामें प्रत्येक बिषय सम्यक् प्रकारसे बताये गये हैं। हमारी सुप्तप्राय (सोई हुईसी) समाजमें अगर आप जैसे योग्य विद्वान् फिर बी कोई होंगे तो ज्ञान चारित्र तथा श्रीसंघका शीघ्र उदय होगा, ऐसा मैं मानताहूँ
आपका
उपाध्याय जैनमुनि आत्माराम पंजाबी इसी प्रकार लाहोरमें विराजते हुए पण्डितवर्य विद्वान् मुनिश्री १००८ श्री भागचन्दजी महाराज तथा पं. मुनिश्री त्रिलोकचन्दजी
महाराजके दिये हुए, श्री उपाशकदशाङ्ग सूत्रके
प्रमाणपत्रका हिन्दी सारांश निम्न प्रकार हैं श्री श्री स्वामी घासीलालजी महाराज कृत श्री उपासकदशाङ्ग सूत्रकी संस्कृत टीका व भाषाका अवलोकन किया, यह टीका अतिरमणीय व मनोरन्जक है' इसे आपने बडे परिश्रम व पुरुषार्थसे तैयार किया है सो आप धन्यवादके पात्र हैं । आप जैसे व्यक्तियोकी समाजमें पूर्ण आवश्यकता हैं आपकी इस लेखनी से समाजके विद्वान् साधुवर्ग पढकर पूर्ण लाभ उठावेंगे, टीकाके पढनेसे हमको अत्यानन्द हुवा, और मनमें ऐसे विचार उत्पन्न हुए कि हमारी समाजमें भी ऐसे २ सुयोग्य रत्न उत्पन्न होने लगे-यह एक हमारे लिये बडे गौरवको बात हैं ।
वि. सं- १९८९ मा. आश्विन
कुष्णा १३ वार भौम लाहोर. श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्र की 'अनगार धर्माऽमृतवर्षिणी' टीका पर जैनदिवाकर साहित्यरत्न जैनागमरत्नाकर परमपूज्य श्रद्धेय जैनाचाय श्री आत्मारामजी महाराजका सम्मतिपत्र
लुधियाना, ता. ४-८-५१ मैंने आचार्यश्री घासीलालजी म. द्वारा निर्मित 'अनगार-धर्माऽमृत-वर्षिणी टीका वाले श्री ज्ञाताधर्मकथाङ्ग सूत्रका मुनि श्री रत्नचन्द्रजीसे आद्योपान्त श्रवण किया ।
શ્રી દશવૈકાલિક સૂત્ર: ૧