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________________ सुबोधिनी टीका सू. १५४ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशोराजवर्णनम् ३३१ दासीदासगोमहि गवेलक' गृह्णन्ति, अष्टतलोच्छ्रितप्रासादावत सकान् कारयन्ति, स्नाताः कृतबलिकर्माणः कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्ताः उपरिप्रासादवरगताः स्फुटद्भिमुंदङ्गमस्तकैः द्वात्रिंशद्वद्धकैर्नाटकैर्वरतरुणीस प्रयुक्तरुपनय॑माना उपगीयमानाः उपलाल्यमानाः इष्टान् शब्द-स्पर्श-रसरूपगन्धान पञ्चविधान् मानुरु कान कामभोगान प्रत्पनुभवातो आकरके उन्होंने वज्रमणियो का विक्रय किया. (सुबहुदासीदासगोमहिसगवेलगं गिण्हंति और उसे प्राप्त द्रव्य से अनेक दासी, दास, गो महिष तथा गवेलको को खरीदा अर्थात् इनका संग्रह किया (अट्ठतलमूसियपासायवडिंसगे कारावे ति) और आठ खण्डों से सुशोभित ऊंचे २ श्रेष्ठ प्रासादों का निर्माण कराया (व्हायाकयवलिकम्मा, कयकोउयमंगलपायच्छित्ता) स्नान करके बलिकर्म-वायसादिको अन्नादि का भाग देने रूप बलिंकर्म करके एवं कौतुक, मंगलरूप प्रायश्चित्त करके वे उन (उप्पि पासायवरगया) प्रासादों के ऊपर ही रहते (फुट्ठमाणेहिं, मुइंगमत्थएहिं, बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं, वरतरुणी संपउत्तहिं) और वहीं रहकर वे अतिवेग से ताडित किये गये मृदङ्गां के निनादों से तथा सुन्दर २ तरुणियों द्वारा अभिनीत किये गये बत्तीस प्रकार के नाटकों से (उवणच्चिज्जमाणा) उपनर्त्यमान (उवगिज्जमाणा, उवलालिजमाणा) उपगीयमान और उपलाल्यमान होते हुए (इटे सद्दफरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पचणुभवमाणा विहरति) इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध इन पांच प्रकार के मनुष्यसंबधी कामभोगों को भोगते २ आनन्दपूर्वक अपना समय व्यतीत करने लगे (तएणं से त्यां पहचान तभणे माणसानु वेया अयु (सुबहुदासीदासगोमहिसगवेलग गिण्हति) मने रे द्रव्य भज्यु तेनाथी | हासी. पास, गो, भडिप तम गवसोनी भरीही . मेटले भनी सड यो. (अद्वतलमसियपासायवर्डिसगे कारावे ति) मने 218 मामायाथी सुशामित या श्रेष्ट प्रासाहानु निभाए ४२।०यू. (हाया कयबलिकम्मा, कयकोउयम गलपायच्छित्ता) સ્નાન કરીને, બલિકમ-કાગડા વગેરેને અન્ન વગેરેને ભાગ આપીને અને કૌતુક મંગલ ३५ प्रायश्चित्त रीने तेसो ते (उपि पासायवरगया) प्रासाहोनी ५२ ०४ २९॥ साया. (फूट्टमाणेहि, मुइंगमथएहि, बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं, वर तरुणी सपउत्तेहि) मने त्यां४ २डीन ते मतिवेगथी प्रताडित ४२८॥ भृगाना નિનાદથી તેમજ સુંદર સુંદર તરૂણ સ્ત્રીઓ દ્વારા અભિનીત કરાયેલ બત્રીસ પ્રકારના नाटाथी (उवणच्चिज्जमाणा) उपनृत्यमान (उवगिज्जमाणा, उवलालिज्जमाणा) 6गीयमान मने प्यमान थता (इटे सद्द फरिस-रस-रूव-गधे पचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरंति) श४, २५श, २स, ३५, બંધ આ પાંચ પ્રકારના મનુષ્ય સંબંધી કામને ઉપલેગ કરતા આનંદપૂર્વક શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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