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सुबोधिनी टीका सु. १२६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम्
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किं परिणमयति ? किं खादति ? किं पिबति ? किं ददाति ? किं प्रयच्छति ? यत् खलु एप एतावन्महालयाय मनुष्यपरिषदो मध्यगतो महता शब्देन ब्रवीति ? एवं संप्रेक्ष्यते, चि सारथिमेवमवादीत्-चित्र ! जडाः खलु भो ! जड पर्युपासते यावद् ब्रवीति, स्वात्यामपि खलु उद्यानभूमौ नो शक्नोमि सम्यकू प्रकामं प्रविचरितुम् ॥ ० १२६ ॥
टीका- 'तरण' से चित्ते' इत्यादि
ततः खलु स चित्रः सारथिर्यत्रैव मृगवनं = मृगवननामकमुद्यान यत्रैव केशिनं कुमारश्रमणस्य अदूरसामन्तं = नातिदूर नातिसमीपरूपं स्थलं तत्रवोप(किं परिणामेइ) किस प्रकार से खाये हुए भोजन को परिणमाता है ? ( किं खाया, किं पियइ, किं दलइ, किं पपच्छइ) कैसी रुचिर वस्तु को यह खाता है ? किस प्रकार की रुचिर वस्तु का यह पान करता है ? यह लोगों के लिये क्या देता है ? क्या विशेषरूप से यह उन्हें वितरित करता है ? (जंणं एस ए महालियाए मणुस्सपरिसाए मज्झगए महया सण ब्रूयाइ) जो यह पुरुष इतनी बडी विशाल मनुष्य परिषदा के बीच में बैठ कर बड़े जोर से बोल रहा हैं ? ( एवं सपेहेइ) ऐसा उसने विचार किया (चित्तं सारहिं एवं व्यासी) इस प्रकार विचार करके फिर उसने चित्र सारथि से ऐसा कहा - (चित्ता ! जड्डा खलु भो जङ्गु पज्जुवासंति, जान बूयाइ, साए वियणं उज्जाणभूमीए नो सम्म पकामं पवियरित्तए) हे चित्र! जड जड की पर्युपासना करते हैं यावत् यह बडे जोर से बोल रहा है। मैं अपनी भी उस उद्यानभूमि में इच्छानुसार अच्छी तरह से घूम नहीं पा रहा हू । भतनो आहार १रै छे ? (किं परिणामेइ) देवी रीते मासा लोन्नने परिभावे छे ? (किं खायइ, किं पियइ, किं दलइ, किं पयच्छइ) ४ भतनी ३यिनी वस्तुने! આ આહાર કરે છે ? કઈ જાતની રૂચિની વસ્તુનુ' આ પાન કરે છે? લેાકેાને આ शु आये छे ? विशेषज्ञथी या शु दोभना भाटे वितरित उरे छे ? ( जण एस ए महालियाए मणुस्सप रिसाए मज्झगए महया सद्दण बुधाइ) ले मा પુરૂષ આટલી મેટી લેાક પરિષદોની વચ્ચે બેસીને અહુ મેટા સાદે ખેલે છે ? (' सपेइ ) मा प्रमाणे तेथे विचार अर्यो (चित्तं सारहि एवं वयासी) आम विचार उरीने पछी तेथे चित्र सारथिने या प्रमाणे - (चित्ता ! जड्डा खलु भो जडु पज्जुवास ंति, जाव बूयाइ, साए वि यणं उज्जाणभूमीए नो संचाएमि सम्म पकाम पवियरित्तए) हे चित्र ! भन्ने सेवे छे यावत् आ मडु भोटा साहे ખેલી રહ્યો છે. હું પોતે પણ આ ઉદ્યાનભૂમિમાં સ્વસ્થતાપૂર્વક સારી રીતે હરી ફરી શકતા નથી,
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨