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________________ १५० राजप्रश्नीयसूत्रे व' चित्र ! तैरेव चतुर्भिरश्वैः अश्वरथं युक्तमेव उपस्थापययावत् प्रत्यर्पय । ततः खलु स चित्रः सारथिः प्रदेशिना राज्ञा एवमुक्तःसन् हृष्ट तुष्ट- यावत् हृदय उपस्थापयति, एतामाज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयति । ततः खलु स प्रदेशी राजा चित्रस्य सारथेरन्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्ट तुष्ट - यावद् अल्पमहार्घाभरणालङ्कृतशरीरः स्वाद् गृहाद् निर्गच्छति, यत्रव चातुर्घष्टः अश्वरथ शक्ति से युक्त हुए इन्हें देखिये । (तए ण से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी) तब उस प्रदेशी राजाने चित्र सारथि से ऐसा कहा -- ( गच्छाहि गं तुम चित्ता ! तेहि चेव चउहिं आसेहिं आसरह जुतामेव उववेहि जाव पचविणाहि ) हे चित्र ! तुम जाओ और उन्हीं कम्बोज से प्राप्त हुए चारों घोड़ों से युक्त करके अश्वाध को तैयार कर ले आओ। और उस बात की मुझे पीछे खबर दो (तएण से चित्ते सारही पएसिणा रन्ना एवं वुत्ते समाणे हतुट्ठ जाव हिए उags एयमाणत्तिय पचणिह ) इस प्रकार से प्रदेशी राजा द्वारा कहा गया वह चित्र सारथि बडा ही हृष्टतुष्ट यावत् हृदयवाला हुआ और उसने चार घोडों से युक्त करके अश्वरथ को उपस्थित कर दिया, बाद में प्रदेशी राजा को इसका निवेदन किया (तएण से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स श्रंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट जाव अप्पम हग्धा भरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ णिग्गच्छ) इसके बाद प्रदेशी राजा चित्र थी युक्त थयेला ते घाहामोनु निरीक्षण ४२. (तरण से परसी राया चित सारहिं एवं वयामी) त्यारे ते प्रदेशी रान्नखे यित्रसारथीने या प्रमाणे उ ( गच्छहिण तुम चित्ता ! तेहि चेव चउहिँ आसेहि आसरह जुत्तामेव sage जाव पञ्चपिणाहि ) हे चित्र ! तमे भयो भने ते मोन्डेशना नागરિકાથી પ્રાપ્ત થયેલા ચારેચાર ઘેડાઓને રથમાં જોડીને તે અર્થે અહીં’ઉપસ્થિત १. अने ते पछी भने आा वातनी मजर आये. (त एण से चित्तें सारही पक्षिणा रन्ना एवं वृत्ते समाणे हट्ट जाव हियए उबडवे एयमाणतियं पञ्चपिण्ड ) या प्रमाणे प्रदेशी रान वडे आज्ञापित थयेसो ते चित्रसारथि ખૂબજ હતુઃ હૃદયવાળા થયો અને તેણે ચારેચાર ઘેાડાઓથી સજજ કરીને અશ્વરથ ત્યાં રાજાની સેવામાં ઉપસ્થિત કર્યાં. અને ત્યાર પછી તેની ખબર રાજાની પાસે पहाडी (तएण से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स अतिए एमई सोचा निसम्म हट्ठ जाव अप्पमहग्धाभरणाल कियमरीरे साओ गिहाओ णिग्गच्छइ) त्यारयछी प्रदेशी शब्द चित्र सारथिनी अश्वस्थ उपस्थित थहा भवानी શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્ર : ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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