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________________ सुबोधिनी टीका. सूत्र ११४ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् ९३ चेइए जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ, केसिकुमारसमणस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हटु जाव उठाए जाव एवं वयासीएवं खलु अ भंते ! जियसत्तुणा पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं जाव उवणेहि ति कडु विसजिए, तं गच्छामि गं अहं भंते ! सेयंवियं नयरि ! पासादीया णं भते! सेयंविया णयरी, एवं दरिसणिज्जा णं भंते ! सेयंविया णयरी, अभिरूवा गं भंते! सेयंविया गयरी पडिरूवा णं भते ! सेयं विया णयरी, समोसरह णं भते ! तुन्भे सयंवियं णयरि ॥सू० ११४॥ ___ छाया-ततः खलु स जितशत्रू राजा अन्यदा कदाचित् महार्थ यावत् माभृतं सज्जयति, चित्र सारथिं शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत् गच्छ खलु त्वं चित्र! श्वेतपिकां नगरीम्. प्रदेशिनो राज्ञ इदं महार्थ यावत पाभृतम् उपनय, मम पादग्रहण यथा भणितम् अवितथम् असन्दिग्धम् वचन 'तएणं से जियसत्तू राया' इत्यादि । सूत्रार्थ--(तएण से) इसके बाद उस (जियसत्तू राया) जितशत्रु राजाने (अन्नया कयाइ) किसी एक समय (महत्थं जाव पाहुई सज्जेइ) महाप. योजनसाधक यावत् प्राभृत को सजाया, (सज्जित्ता चित्तं सार हिं सदावेइ) सजाकर फिर उसने चित्र सारथि को बुलाया. (सदायित्ता एवं क्यासी) बुलाकर उससे ऐ सा कहा-(गच्छाहि णतुमंचित्ता। सेय वियानयरिं पए पसिस्स रन्नो इम महत्थं जाव पाहड उवणेहि) हे चित्र ! तुम जाओ और श्वेतांबिका नगरी में प्रदेशी राजा के पास इस महाप्रयोजन साधक यावत 'त एण से जियसत्त राया' इत्यादि । सूत्रार्थ:--(त एण से)त्यारे पछी ते (जियसन राया) fruनये (अन्नया) कयाइ) आई मे मते (महत्थ जाव पाहुड सज्जेइ) भाप्रयोग साथ यावत् सेट (प्राकृत) तैय२ ४ी. (सज्जित्ता चित्तं सारहिं सदावेइ) तैयार ४शन तेणे चित्र साथीन मासाव्या. (सदावित्ता एवं क्यासी) मासावीनते) मा प्रभारी ह्यु (गच्छहि ण तुम चित्ता! सेयं विया नयरिं पएसिस्स रन्नो इम' महत्थं जाव पाहुड उवणेहि) यित्र! तमे वेतqि नगरीमा प्रदेशी रानी पासे या શ્રી રાજપ્રશ્રીય સૂત્ર: ૦૨
SR No.006342
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages489
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size27 MB
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