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________________ अमगारधर्मामृतवषिणो टी० श्रु० २ ० १ १०१ कालीदेवीवणनम् ७७१ प्रत्यर्पयन्ति = तदाज्ञानुसारेण कार्यं कृत्वा निवेदयन्ति । ' णवरं ' नवरं = विशेषस्त्वयम् - यत्- सूर्याभस्य यानविमानं योजनशतसहस्र विस्तीर्णमस्ति अस्यास्तुयोजन सहस्र विस्तीर्ण यानविमानमस्ति शेषं तथैव विज्ञेयम् । तथैव सूर्याभदेववदेव काली देवी स्वस्य नामगोत्रं साधयति कथयति । तथैव = सूर्याभदेववदेव च नाटयविधिम् उपदर्शयति, उपदर्श्य यावत् प्रतिगतायत आगता तत्रैव प्रतिनिवृत्ता ।। ०२॥ + मूलम - भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं क्यासी-कालिए णं भंते ! देवीए सा दिव्या देfasts कहिं गया० कूडागारसालादिट्टंतो, कि जब यह विमान बनकर तैयार हो जाये तब उसकी पीछे हमें खबर कर देना । सो उन आमियोगिक देवों ने वैसा ही किया और पीछे इसकी खबर उसे कर दी। इसमें ( जोयणसहस्तवित्थिष्णं जाणचिमाण सेसं तहेव ) विशेषता इतनी रही कि सूर्याभदेव का यान विमान एक लाख योजन का विस्तारवाला था। तब कि इसका यह यान विमान १ हजार योजन का विस्तारवाला था। बाकी सब रचना इसकी उसी सूर्याभ विमान की तरह जाननना चाहिये । (तदेव णामगोयं साहे, तहेच नाटयविहिं जयदंसेइ जाय पडिगया) सूर्याभ देव की तरह काली देवी ने अपने नाम गोत्र का कथन किया और सूर्याभ देव की तरह ही विधि को दिखलाया दिखालाकर फिर यह जहां से आई थी वहीं पर पीछे गई सूत्र २ ॥ વિમાન તૈયાર થઈ જાય ત્યારે તેની મને જાણ કરવામાં આવે. ત્યારપછી તે આભિચાગિક દેવએ તેમજ કર્યું. અને વિમાન તૈયાર થઈ જવાની ખબર દેવીની પાસે મોકલાવી દીધો या विमानयां ( जोयणसहस्त्रवित्थिणं जाण. विमाणं सेसं तहेब) विशेषता भारती उती है क्या? सूर्यालहेवनुं यानવિમાન એક લાખ ચેાજન જેટલું વિસ્તારવાળુ` હતું ત્યારે તેનું આ યાન–વિમાન એક હજાર ચાજન જેટલું વિસ્તારવાળુ હતું ખાકી રચના સ`ખી તેની બધી विगत सूर्याल- विमाननी प्रेम भगवी लेये ( तहेब णामगोयं साहेइ, तहेब नाटयविहिं उवदंसेइ जाव पडिगया ) सूर्यालदेवनी प्रेम अजी हेपी પેાતાના નામ-ગેત્રનું કથન કર્યુ અને સૂર્યાભદેવની જેમ જ નાટ્યવિવિધ મતાવી અને બતાવીને તે જ્યાંથી આવી હતી ત્યાંજ પાછી જતી રહી. । સૂત્ર ૨૫ ०४ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૩
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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