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________________ ७८ ज्ञाताधर्म कथाङ्गसूत्रे आत्मनैव 'समुव्वेक्रवमाणे२' समुत्प्रेक्षमाणः२=पुनःपुननिरीक्षमाणः सर्वं यथा-स्थानं व्यापारयन्नित्यर्थः विहरति अवतिष्ठते ॥ ४॥ मूलम्-तस्स णं सेणियस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था जाव सेणियस्स रणो इट्रा जाव विहरइ ॥सू० ५॥ टीका-'तस्स णं' इत्यादि । तस्य खलु श्रेणिकस्य राज्ञा धारिणी नाम देवी-द्वितीया राज्ञी 'होत्था' आसीत् । सा कीदृशी ? इत्याह-'जाव' यावत्, यावच्छन्देन-'मुकुमालपाणिपाया अहीणपंचिंदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोक्वेया माणुम्माणपमाणसुजायसव्यंगसुंदरंगी ससिसोमागारा कंता पियदसणा सुरुवा करयलपरिमियतिवलियमज्झा कोमुईरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा सिंगारागारचारुवेसा संगयगयहसियभणियविहियविलाससललियसंलावनिउणजुत्तोवयारकुसला पासाईया दंसणिज्जा अभिरूवा पडिख्वा' इति पाठस्य संग्रहः। सुकुमारपाणिपादा-सुकोमलकरचरणा, अहीनपश्चेन्द्रियकरती हैं उस स्थान का नाम अन्तःपुर है। यहां जो "च" शब्द पडा है वह राज्य के और भी जो अनेक प्रकार होते हैं उन सबका मूचक है। ॥४॥ ___ "तस्स णं सेणियस्स रन्नो इत्यादि टीकार्थ-(तस्स णं सेणिस्स रन्नो) उस श्रेणिक राजा के (धारिणीनामं देवी होत्था) धारिणी नाम की पटरानी थी। (जाव सेणिस्स रण्णो इंट्ठा जाव विहरई) यहां जो यह "यावत् शब्द का प्रयोग हुआ है वह रानी के स्वरूप वर्णनरूप इस पाठ को सूचित करता है-वह पाठान्तर इस प्रकार के है "सुकुमालपाणिपाया अहीणपंचिदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणपमाणसुजायसव्वंगसुंदरंगी ससिसोमागारा कंता" आदि "इस का अर्थ इस तरह से है-रानी के दोनों हाथ और पैर विशेष નામ અન્તઃપુર છે. અહીં જે “ચ” શબ્દ આવેલ છે, તે રાજ્યના બીજા અનેક પ્રકારે હોય છે, તે બધાને સૂચક છે સૂત્ર કા ___ "तस्स णं सेणियस्स रन्नो इत्यादि-- 2-(तस्स णं सेणिस्स रन्नो) ते श्रेणुि २२ने (धारिणी नामं देवी होत्था) धारिणीनामे ५८राशी ती.(जाव सेणिस्सरणों इट्टा जाव विहरइ) माडी २ 'यावत्' શબ્દનો પ્રયોગ થયેલ છે, તે રાણીના રૂપવર્ણન રૂપ જે આ પાઠાન્તર છે, તેને સૂચવે छ. ते पन्त२ 20 प्रभाएो छ-सुकुमालपाणिपाया अहीणपंचिंदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणपमाणसुजायसव्वंगसुंदरंगी ससि सोमागारा कंता 'आदि' मान! म मा शत छ राणीना राय ५१ मन्ने શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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