________________
७२६
___ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे परिवसतः। किं भूतौ शृगालौ 'पावा' पापौ-पापात्मानौ, 'चंडा' चण्डो-प्रबल. कोपयुक्तो, 'रोदा' रौद्रौ भयंकरो, 'तल्लिच्छा' तल्लिप्सौ अत्र तच्छब्देन मांसस्य परामर्शः चण्डरौद्र विशेषणोपादानात् मांसेच्छासमन्वितो, साहसिकौ बलात्कारिणौ दुष्टौ, 'लोहिय पाणी लोहितपाणी रत्ताकरौ अत्र पाणिशब्दोऽग्रिमचरणद्वयं मुखं च बोधयति, शगालादीनां चरणमुखस्यैव करकार्यकारिस्वात् अजमेषवालादिशोणितसंसक्त मुखचरणावित्यर्थः, आमिषार्थिनौ-मांसाद्यभिलाषिणो, आमिषाऽऽहारौ मांसादिभक्षको, आमिषप्रियो आमिपलोलोमांसजिघृक्षया चपलो, आमिषं गवेषयमाणौ अन्वेषयन्तौ रात्रौ विकाल चारिणी विकाला सूर्यास्तमनकालः, तत्र चरितुं शीलं ययोस्तौ तथा, सायं रात्रौ च मांसेच्छया भ्रमणशीलावित्याः। 'दिया पच्छन्नं चावि चिटुंति' 'चावि' अपि च दिवा-दिवसे प्रच्छा नौ-गुप्तौ-जनैरलक्षितौ भूत्वा तिष्ठतः ॥मू. ३॥ सियालगा परिवसंति) वहां दो पाप कर्म में परायण शृगाल रहते थे। ये दोनों (पाग चंडा, रोहा, तल्लिच्छा, साहसिया, लोहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रत्तिं वियालचारिणो दियो पच्छन्न चावि चिट्ठति) श्रृगाल पापात्मा थे, चौंड थे, प्रबल कोप से युक्त थे, रौद्र थे,--भयंकर थे, मांस की इच्छा से समन्वित थे, बलात्कारी थे--दुष्ट-थे-इनके आगे के दोनों चरण और मुख सदा रक्त से आई वने रहते थे। मांसादि के ये सदा अभिलापी थे, आमिष (मांस) ही इन्हें अधिक प्रिय था--मांस के जिघा होने से ये चपल बने रहते थे। इसलिये रात और दिन ये मांस की इच्छा से इधर उधर फिरा करते थे। कभी २ दिन में छुपकर भी बैठ जाते थे। मू. ३। (तत्थण दुवे पावसियालगा परिवसंति) त्यां पापभमा प्रवृत्त पने शिया २ता हु. २मा ने (पावा, चंडा, रोहा, तल्लिच्छा. साहसिया, लोहियपाणी, आमिसत्थी आमिसाहारा अमिसप्पिया, 'आमिसलोला' आमिस गवेसमाणा रत्ति वियालचारिणो दिया पच्छन्ने चावि चिटुंति) पापी हता, 3 (मय ४२) हता, म अधी हुत॥ रौद्र उता, लय ४२ उता, માંસના ઇછુક હતા, બળજેરી કરનારા હતા, દુષ્ટ હતા, તેમના આગળના બંને પગ તેમજ મેં હંમેશા લેહીથી ખરડાએલાં રહેતાં હતાં. માંસ વગેરેના તેઓ અભિલાષી હતા, આમિષ (માંસ) જ તેમને આહાર (ખેરાક) હતો. માંસ જ તેમને વધારે પડતું ગમતું હતું. માંસના જિઘડ્યુ હોવાથી તેઓ બંને હંમેશા ચપળ રહેતા હતા રાત અને દિવસ તેઓ માંસની શોધમાં ચોમેર વિચરતા રહેતા હતા. કઈક વખત દિવસમાં પણ શિકારની શોધમાં છુપાઈને બેસી જતા હતા. એ સૂત્ર ૩
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧