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________________ ७२४ RA ज्ञाताधर्म कथागसूत्रे दादिदलानि पुष्पपलाशानि-पुष्पाणां पत्राणि पांखडी' इति भाषा प्रसिद्धानि, संछ न्नानि-आच्छादितानि जलोपरिविद्यमानत्वादावरणानि यत्र स तथा, 'यहु उप्पलपउम-कुमुयनलिण समग सोगंधिय पुंडीय महापुंडरीय सपप त सहस्तपत्त-केसरपु प्फोवचिए' बालपम कुमुदनलिन तुमग-सौगन्धिक पुण्डरीक महापुण्डरीकशतपत्र-सहस्रपत्र-केसरपुष्पोपचितः बहूनाम् उत्पलादि सहस्रपत्रपर्यन्तानां केसरैः पुष्पैश्वोपचितः शोभा सुगधयुक्तत्वात्समृद्धः तत्रोत्पलानि-नीलकमलानि, पद्मानि-मर्यविकासोनि कमलानि, कुमुदानि कुमुदनाम्ना प्रसिद्धानि-चन्द्रविकासीनि, नलिनानि-रक्तकमलानि पुण्डरीकाणि=शुलैंकमलानि महापुण्ड. रीकानि-विशालशुक्रकमलानि-शतपत्राणि-शतपत्रयुक्तानि कमलानि, सहस्रपत्राणि सहस्रपत्रसमन्वितकमलानि हृदस्य पुनर्विशेषणमाह-पासाईए' इत्यादि मासादीयः, दर्शनीयः, अभिरूपः एतानि चत्वारि पदानि पूर्व व्याख्यातानि । तत्र हदे खलु बहूनां मत्स्यानां च कच्छपानां च ग्राहाणां च मकराणां च पत्त पुप्फपलासे) पत्र-कमल-कुमुद आदि के दलों से, तथा पुष्प पलाशों से--पुष्प की पांखडियों से यह आच्छादित हो रहा था । (बहुउप्पल पउम-कुमुय.नलिण सुभग सोगंधिय पुंडरोय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त केसरपुप्फोवचिए) अनेक नीलकमलों की, मूर्य विकाशी पद्मो की, चंद्र विकाशी कुमुदों की लालकमलों की, सफेद कमलों की, विशालशुरू कमलों की, शतपत्र युक्त कमलों की, सहस्रपत्र युक्त कमलों की केसर से और पुष्पों से समृद्ध था। (पासाईए, दंसणिजे अभिरूवे पडिरूवे) यह प्रासादीय था दर्शनीय था, अभिरूप था, प्रतिरूप था। इन प्रासादीय आदि पदोका अर्थ पहिले लिख दिया गया है। (तत्थणं बहूण मच्छाण, य, कच्छभाणय, गाहाणय, मगराणय, सुंसुमाराण य, सइयाणप કમળ કુમુદ વગેરેના દળ તેમજ પુષ્પ પલાશેથી (ફૂલેની પાંખડીઓથી ઢંકાએલ डतु(बहु उप्पल-पउम-कुमुय-नलिण-सुभग-सोगंधिय-पुडरीय-महापुंडरीयसयपत्तसहस्सपत्तकेसरपुप्फोवचिए) घji भू भगो, सूर्य विशी पनो, ચંદ્ર વિકાસી કુમુદે, લાલ કમળો શ્વેતકમળો, મેટા સફેદ કમળો, શતપત્રવાળાં કમળ, सनहस भगाना श२ तेभा पोथी इ समृद्ध हो. (पासाईए, दंसणिज्जे, अभिरूवे पडिल्वे) ते ६ प्रासदीय (मनने प्रसन्न ४२ना२) शनीय અભિરૂપ (સુંદર) અને પ્રતિરૂપ હતું. અહીં પ્રયુક્ત થયેલા પ્રાસાદી વગેરે પદોના मथ पडतां समलवामा माव्या छे (तत्थण बहूण मच्छाणय, कच्छभाणय, गाहाण य, मगराण य, सुसुमारोग य, सइयाण य साहस्सियाण य શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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