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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे भागे मालुकाकक्षकः आसीत्, वर्णकः वर्णन: मालुकाकक्षकस्य वर्णनमत्रैव द्वितीयाध्ययनेऽभिहितम्. ।
'तत्थ णं तत्र खलु एका वनमयूरी द्वे-द्विसंख्यके 'पुढे' पुष्टे-वर्द्धिते 'परियागए' पर्यायागते-पर्यायेण प्रसूतिकालक्रमेण आगते प्रसूतिकालमाप्ते इत्यर्थः, परियागए-इत्यत्र यकारलोषः प्राकृकत्त्वात् 'पिटुंडी पंडुरे' पिष्टोण्डी पाण्डुरे तत्र-पिटु' पिष्टस्य-ताण्डुलचूर्णस्य 'उंडी' पिण्डो तद्वत् पाण्डुरे धवले ये ते तथा 'निव्वणे' निर्बणे-क्षतरहिते 'निरूपहते-उपद्रव -रहिने 'भिन्नमुट्रिप्पमाणे' भिन्नमुष्टिप्रमाणे तर 'मिन्नं' भिन्ना मध्यरिक्ता या मुष्टिः सा प्रमाणं ययोस्ते तथा 'मऊरी अडए' मयूराण्ड के मयूरो त्पाद के अडे 'पमुबइ' प्रसते-जनयति, प्रम्य-जनयित्वा 'सएण' पक्ख वाएण" म्वकेन पक्षपातेन अण्डोपरि स्वकीयपक्षाच्छादनेन 'सारक्खमाणी' उत्तर दिशामें एक ओर मालुक कच्छनाम का वन था। इस मालुका कच्छ का वर्णन इसी शास्त्र के द्वितीय अध्ययनमे किया जा चुका है । (तत्थ णं एगा वणमऊरी दो पुढे मऊरो अंडए पसवइ परियागए ) उस कक्षकमें एक वन मयूरो ने दो पुष्ट मयूर उत्पादक अंड उत्पन्न किये। ये दोनों अंडे उसने भिन्न भिन्न समयमें अर्थात् एक पहिले और एक दूसरा उसके उसी समय बादमे प्रमुत किये थे। (पिडो पडुरे) ये दोनों ही तंदल चूर्ण की पिठी-पिण्डो-के समान धवल थे। (निव्वणे निरुवहये भिन्न मुट्टिप्पमाणे) बिना किसी क्षत के थे। उपद्रव रहित थे। और मरिक्त पोलो मुष्टि के बराबर थे। (पसवित्ता सएणं पर ववाएण सारक्खमाणी संगोवमाणी सबढेमाणी विहरइ ) प्रसव करके उसने उन दोनों मयू. रोत्पादक अंडो की अपने पंखों के द्वारा आच्छादन करके अर्थात् उन दोनों अंडो को अपने पंखों के नीचे रख और उन पर पंखो को पसार माता सूत्रना भी ययनमा ४२वामां आव्यु छ. (तस्थगएगा वणमऊरी दोपुढे मऊरीअडए पसवइ परियागए) ते भादु। ४क्षमा से बननादसे में सु મારોને ઉત્પન્ન કરનારા એવા બે ઈંડા મૂક્યાં. આ ઈડા તેણે એક પછી અને એટલે કે ये पडसा मनुहा नु मते भूस्या हुतi. (
पिडी पंडुरे) मने -या योगाना aten पानी म पो ता. (निव्वण्णे निरुवहये भिन्नमुटिप्पमाणे) ते मने ઈડાઓ ક્ષત વગરના, ઉપદ્રવ રહિત અને વચ્ચે પિલી મૂઠીની બરાબર હતા. (पसवित्ता सएण पक्खएण सारक खमाणी संगोवमागी संबढ़ेमाणी विहरइ) ઈંડાં મૂક્યા બાદ બંને મયુત્પાદક તે ઢેલે પાંખે પ્રસારીને બંને ઈડાને પાંખોથી
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧