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________________ अनगारधर्मामृत वर्षिणीटीका अ. २. धन्यस्य विजयेन सह हडिबन्धनादिकम् ६४१ ष्ठापयत । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहो विजयेन तस्करेणैवमुक्तः सन् 'तुसिणीए' तूष्णीकः= उदासीनतया वाग्व्यापाररहितः सन संतिष्ठति । ततः खलु-तत्पश्चात् स धन्यः सार्थवाहः 'मुहत्तं तरम्स' मुहूर्तान्तरेण पुनः 'उच्चारपासवणेणं' उच्चारपस्रवणाभ्यां 'बलियतराग' बलिततरम् अतिप्रबलम् 'उवाहिज्जमाणे' उहाध्यमान = अतिशयेन पीडयमानो विजयं तस्करमेवमवादीत-एहि तावत् हे विजय ! यावद् अपक्रामावः। ततः खलु स विजयो धन्यं सार्थवाहमेवमवादीत-यदि खलु यूयं देवानुप्रियाः ! तस्माद् प्रस्रवण की बाधा से निवृत्त होइये। (तएणं से धण्णे सत्थवाहे विजएणं तकरेणं एवंवुत्ते समाणे तुसिणीए संचिठ्ठइ तएणं से धण्णे सत्यवाहे मुहत्ततरस्स बलियतराग उच्चारपासवेण उव्वाहिजमाणे विजयं तक्करं एवं वयासी) विजय चौरने जब धन्यसार्थवाह से इस प्रकार (उलाहने के रूप में) कहा तो वह चुप हो गया। इसके बाद पुनः थोडी देर में धन्यसार्थवाह को उच्चार और प्रस्रवण की बाधा पहिले की अपेक्षा और अधिक रूपमें हुई तब उसने विजय चौर से इस प्रकार कहा-(एहि तार विजया ! जाव अवक्कमाभो, तरणं से धणं सत्यवाहं एवं क्यासी-जइण तुम देवानुप्पिया ! तओ विउलाओ अमण ४ संविभाग करेहि तओ हं तुम्भेहिं सद्धिं अवकमामि) आओ. विजय-हम तुम दोनों एकान्त-निर्जन-स्थान में चले । मुझे उच्चार और प्रस्रवण की बहुत जोर से बाधा हो रही है। इस तरह धन्य सार्थवाह की बात सुनकर विजयने उससे कहा-यदि तुम हे देवानुप्रिय ! उस विपुल भु०४५ मेान्तमा ने अय्या२प्रश्नपशुनी भुश्तीथी निवृत्ति मेवो. (तएणं से धण्णे सत्थवाहे विजएणं तक्करेणं एवंवुत्ते समाणे तुसिणाए सचिट्ठइ तएण से धण्ण सत्थवाहे मुहुत्तंतरस्स बलियतरागं उच्चारपासवेण उव्वाहिजमाणे विजय तक्करं एव वयासी) arय थोरे मे रीते See (ઠપકા) ના રૂપમાં ધન્યસાર્થવાહને આ પ્રમાણે કહ્યું---ત્યારે તે ચૂપ થઈ ગયો. ત્યાર પછી થોડા વખતે ધન્યસાર્થવાહને પહેલાં કરતાં વધારે સખત રીતે ઉચ્ચાર પ્રસવણાની भुश्ती ली थ७. त्यारे ५ तेणे विन्य योरने ४यु (एहि ताव विजया ! जाव अवक्कमामो तएणं से धण्णं सत्थवाह एवं वयासी जइण तुम् देवानुपिया ! तओ विउलाओ असण ४ संविभाग करेहि तओह तुम्भेहिं सद्धि एगतं अवक्कमामि) विन्य यास माप) ने in નિર્જન સ્થાનમાં જઈએ. ઉચ્ચાર પ્રસ્ત્રવણાની સખત મુશ્કેલી મને થવા માંડી છે. આ રીતે ધન્ય સાર્થવાહની વાત સાંભળીને વિજયે તેને કહ્યું હે દેવાનુપ્રિય ! શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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