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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.२ स. ८ देवदत्तवर्णनम् णतया कियङ्ग पुनर्दशनतया अयमुदुम्बरपुष्पवत् श्रवणगाचरतया दुलभः किं पुनदर्शनेन, तस्य नाम श्रवणमपि दुर्लभं वर्तते दर्शनस्य का कथे ति भावः। ततः खलु-एकदा सा भद्रा भार्या देवदत्त दारकं स्नातं सर्वालङ्कारविभूषित पान्थकस्य हस्ते ददाति यावत् पादपतितस्तन्मम निवे. दयति. तत्=तस्मात् कारणात् इच्छामि खलु हे देवानुपियाः देवदत्तस्य दारकस्य सर्वतः समन्तान्मार्गणगवेषणं कर्तुम् । ततः खलु ते नगरपासणयाए) हे देवानुपियों ! सुनो ! भद्रा भार्या की कुक्षि से उत्पन्न हुआ देवदत्त नामक मेरा एक पुत्र है जो विशेष इष्ट यावत् उदुंबर पुष्प के समान सुनने के लिये भी मुझे दुर्लभ था। उसके देखने को तो बात ही क्या है (तएणं सा भदा देवदिन्नं दारयं हायं सव्वालकारविभूसियं पंथगस्स हत्थे दलाइ) उस देवदत्त दारक को भद्रा भार्याने स्नान करा कर और समस्त अलंकारों से विभूषित कर पांथक के हाथमें दिया। (जाव पापपडिए तं मम निवेदेइ) वह उसे गोद में लेकर क्रीडा के लिये राजमार्ग ले गया साथ में और भी कई बालक वालिकायें थीं--उसने वहां जाकर उसे एक तरफ एकांत स्थान में रख दिया और स्वयं उन बालक बालिकाओं के साथ खेलने लग गया। थोडा समय बाद जब वह वहां आया तो क्या देखता हैं कि वहां देवदत्त नहीं हैं आकर उसने मेरे पैरों में पडकर मुझसे यह समाचार निवेदित किया है। अतः (इच्छामि णं देवानुप्पिया! देवदिन्नदारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं काउ') अत: मैं चाहता हूँ कि हे देवा મારી પત્ની ભદ્રાના ઉદરથી જન્મેલે દેવદત્ત નામે મારે પુત્ર હતું. જે મને બહુ જ ઈષ્ટ હતું. તેને જોવાની વાત તે દૂર રહી પણ ઉલ્બરના પુષ્પની જેમ તેનું નામ શ્રવણ पण अस तु. (तएण सा भदा देवदिन दारय हाय सव्वाल कारविभूसिय पंथगस्स हत्थे दलाइ) हेवहत्तने सद्रामायणे नवावीन मां घरेसाथी सुस०४०१ ४ये अने पांथने से यो. (जाव पायपडिए, त' मम निवेदेइ) બાળકને તે કેડમાં લઈને રાજમાર્ગ ઉપર રમાડવા લઈ ગયે. તેની સાથે ઘણું બાળકો અને બાળાઓ હતી. ત્યાં જઈને તેણે બાળક દેવદત્તને એક તરફ બેસાડી દીધો. અને જાતે તે બીજા બાળકની સાથે રમતમાં પડી ગયે. છેડે વખત પછી જ્યારે તે ત્યાં આવ્યું ત્યારે બાળક દેવદત્ત તેને જડે નહિ મારી પાસે આવીને तो मा मधी वात ४० छे. (इच्छामि ण देवाणुप्पिया! देवदिन्न दारगस्स सव्वओ समता मग्गणगवेसण काउ) हुँ याडं छे : भाग १ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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