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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे
परामृश्य नागप्रतिमाश्च यावद् वैश्रमणप्रतिमाच लोभहस्तकेन प्रमार्जयति रजोऽपनयति, प्रमाय उदकधारया 'अन्भुक्खेइ' अभ्युक्षति = अभिषिश्चति, अभ्युक्ष्य 'पम्हलसुकुमालाए' पक्ष्मलसुकुमारया = पक्ष्मवती सुकुमारा तया 'गंधकासाइयाए' गन्धकाषायिकया = गन्धप्रधानकषायरागेण रक्ता शाटिका = लघुवत्र' तथा 'गायाई' गात्राणि 'लूहेइ' रुक्षयति प्रोञ्छति, रूक्षयित्वा 'महरिहं महा=बहुमूल्यं 'वत्थाहणं वत्रारोहणं च वस्त्रसमर्पणम्, एवं 'मल्लारुहणं' माल्यारोहणं च = पुष्पसमर्पण, गंन्धारुर्ण' गंधारोहणं च चन्दनादिगन्धसमर्पणं, 'चुन्नारुहणं' चूर्णारोहणं च श्रगरत गरादिगन्धद्रव्यचूर्णसमर्पण, 'वन्नारुण' वर्णारोहणंच = विलेपनद्रव्यसमर्पणं च करोति यावद् (ज) झुक कर वहां रखी हुई उसने मयूरपिच्छ की प्रमार्जनी को उठायाउठा कह नागमतिमाओं का यावत वैश्रमण प्रतिमाओं का उस प्रमार्जनी से प्रमार्जन किया । ( पमजित्ता उद्गधाराए श्रभुक्खेइ) प्रमार्जन कर फिर उसने उनके ऊपर पानी की धारा छोडी - ( अब्भुक्खित्ता पम्हलसुकुमालाए गंधकासाइयाए) पानी की धारा से सिञ्चित कर के फिर उसने उनकां पक्ष्मल, सुकुमार गंध कषाय से रंगी हुई वस्त्र से (गायाइ लहेइ ) उन के शरीर को पोंछा (लहित्ता) पोंछ कर (महरियं वत्थारुहणं च मल्लारुहणं च गंधारुणं चचुन्नारुणं च वन्नारुणं च करेइ) फिर उसने उन पर वस्त्र का श्रारोपण किया- माल्य का आरोपण किया, गंध द्रव्य का आरोपण किया चूर्ण का आरोपण किया, विलेपन द्रव्य का आरोपण किया अर्थात् जब वह उनके शरीर को पोंछ चुकी तब बाद में उसने उनको वेशकीमती - बहुमूल्य वस्त्र पहिराये - उन्हें बहुमूल्य मालाएँ पहिराई, उनके समक्ष लोमहत्थपणं पमज्जइ) नभीने तेथे त्या भूसी मोरना पीछांनी प्रभानी चाडी उघाडीने नाग वैश्रवणु वगेरेनी प्रतिभानु प्रभानीथी प्रभार्थन यु. ( पमजित्ता उदगधाराए अब्भुक्खेइ) प्रभावन माह तेथे ते प्रतिभागी पर भणधारा वडे सिंथन म्यु (अब्भुक्खित्ता पम्हलसुकुमालाए गंध कासाइयाए) જળધારાથી અભિષિકત કરીને તેણે તે પ્રતિમાઓને પદ્મલ, સુકુમેળ, ગંધ, કષાયથી रंगायेला वस्त्रथी (गाथाइ लूहेइ) तेभना शरीरने सूछयु (लूहित्ता) सूंछीने (महरियं वत्थारुणं च मल्लारुहणं च गंधारुहणं च चुन्नारुहणं च वन्नारुहणं च करेइ) त्यार पछी तेथे प्रतिभाओो उपर वस्त्रो यढाव्यां, भाषाओ। पहेरावी, गंधદ્રવ્યો ચઢાવ્યાં, ચૂર્ણ ચઢાવ્યું, સુગંધિત લેપ ચઢાવ્યા એટલે કે જ્યારે તેણે પ્રતિમાઓને વસ્ત્રથી લૂછી લીધી ત્યાર પછી તેણે તે પ્રતિમાને બહુ કિંમતી વસ્ત્રો પહેરાવ્યાં, અહુ મૂલ્ય માળા પહેરાવી તેમની સામે ચંદન વગેરેના સુગંધિત તેલનુ સિંચન
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શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧