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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका असू. ५० मेघमुनिगतिनिरूपणम् ५५९ ग्रैवेयकविमानावासशतानि, प्रथमवेयकस्यैकादशाधिकैकशतं विमानानि सन्ति, द्वितीयस्य सप्ताधिकशतं तृतीयस्य शतं विमानानि, तानि व्यतिक्रम्य विजये महाविमाने देवत्वेनोत्पन्नः। तत्र खलु अस्त्ये केषां देवानां त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमास्थितिः प्रज्ञप्ता, तत्र खलु मेघस्यापि देवस्य त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमा स्थितिः प्रज्ञप्ता । एष खलु हे भदन्त ! मेघो देवः तस्माद्देवलोकात् 'आउक्ख एणं' विमाणवाससए वीइवइत्ता विजये महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे ) यहां से उर्ध्व लोक में विजय नाम के महा विमान में देव की पर्याय से उत्पन्न हुए हैं। यह विमान ज्योतिषचक्र चन्द्र, सूर्य ग्रह नक्षत्र तारा गणों से बहुत योजन ऊपर है। अनेक शत योजन ऊपर है बहुत हजार योजन ऊपर है। बहुत लाखों योजन ऊपर है। बहुत करोड योजन ऊपर है। बहत कोटि कोटि योजन ऊपर है। तथा सौधर्म ईशान, सनतकुमार माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत इन देवलोकों के भी ऊपर है। तथा ३१८, ग्रेवेयक विमानों के ऊपर है। इनमें १११, विमान प्रथम अवेयक के हैं। १०७, विमान द्वितीय ग्रैवेयक के हैं। १००, विमान तीसरे ग्रैवेयक के हैं। सो इन सब को उल्लंघन करके ऊपर में वह विजय नामका विमान स्थित है। ( तत्थण अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता) वहां पर कितनेक देवों की ३३ तेतीस सागर की स्थिति कही गई है। (तत्थणं मेहस्स वि देवस्स तेतीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता) मेघकुमार देव की भी वहां ३३ सागरोपम की स्थिति कही गई है। ( एस णं भंते मेहे अट्ठारसुत्तरे गेवेज्जविमाण वाससए वीइवइत्ता विजये महाविमाणे देवत्ताए उववण्णे) मी थी Buोभा विन्यनामना महाविमानमा देवना पर्यायथी જન્મ પામ્યા છે. આ વિમાન તિષચક ચન્દ્ર, સૂર્ય, ગ્રહ, નક્ષત્ર તારાઓથી ઘણું જન ઊંચું છે. સૌધર્મ, ઈશાન, સનસ્કુમાર મહેન્દ્ર, બ્રહ્મલેક, મહાશુક, સહસાર, આનત, પ્રાણુત, આરણ, અશ્રુત આ બધા દેવકથી પણ ઉપર આ વિમાન છે. તેમજ ત્રણ અઢાર વૈવેયક વિમાનેથી ઉપર છે. આ ગ્રેવેયક વિમાનમાં એકસો અગિયાર વિમાન પ્રથમ વૈવેયક છે. એક સાત વિમાન દ્વિતીય સૈવેયક છે. એ વિમાન ત્રીજા ગ્રેવેયક છે. આ બધાને ઓળંગીને સૌથી ઉપર આ વિયનામનું વિમાન રહેલું છે. (तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं तेत्तीसं सागरोवमाईठिई पण्णत्ता) त्यां - eu हेवानी तेत्रीस सा॥२ टक्षी स्थिति मतावामा वी. छ. (तत्थणं मेहस्स वि देवस्स तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता) भेषमा२ देवनी पY त्या तेत्रीस શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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