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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे भक्तपान प्रत्याख्यातः आनुपूर्व्या कालं गतः, एतत्खलु हे देवानुपियाः । मेघस्यानगारस्य आचारभाण्डकं-धर्मोपकरणरूप वस्त्रपात्रादिकं वर्तते ॥सू.४९॥
म्लम्-भंते त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी मेहे णामं अणगारे। से गंभंते ! मेहे अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिंगए कहिं उववन्ने ? गोयमाइं समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! मम अंतेवासी मेहे णामं अणगारे पगइ भदए जाव विणीए सेणं तहारूवाणं थेराणं
अंतिए सामाइयमाइयाइं एकारसअंगाई अहिज्जइ, अहिजित्ता बारसभिक्खुपडिमाओ गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं काएणं फासित्ता जाव किहित्ता मए अब्भणुन्नाए समाणे गोयमाई थेरे खामेइ खामित्ता तहारूवेहि थेरेहिं सद्धिं जाव विउलं पव्वयं दूरूहइ पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ ) और चढ़कर--स्वयमेव उन्होंने घनीभूत मेघ के समान श्याम पृथिवी शिलापट्टक की प्रतिलेखना की । (पडिलेहित्ता) पतिलेखना करके फिर उन्होंने (भत्तपाणपडियाइक्खिए) चतुर्विध आहार का परित्याग कर दिया। (अणुपुत्वेणं कालगए) बाद में वे वहां से क्रम २ से आयु कर्म के दलिकों की पूर्ण निर्जरा हो जाने से काल माप्त हो गये हैं (एसणं देवाणुप्पिया! मेहस्स आयारभंडए) हे देवानुप्रिय ! यह आचार भंडक उन्ही मेघकुमार का है। मूत्र “४९" पट्टयं पडिलेहेइ) मने यहीन पोतानी andar तभणे घनीभूत थये। मेघना २५ श्याम पृथ्वी शिलापट्टनी प्रतिमना ४N. (पडिले हित्ता) प्रतिमना प्रशन तभणे (भत्तपाणपडियाइक्खिए) या२ तन माडा२नेत्या ज्यो. (अणुपुत्वेण कालगए) त्यार पछी तेगा त्यां धीमे धीमे आयुमा सिअथा सपूर्णपणे नि पाने २0 0 ( मृत्यु) १२ थया छ. (एस णं देवा. गुप्पिया ! मेहस्स आयारभंडए) हेवानुप्रिय ! २॥ साया२ १ ते भेधउभारना छे. ॥ सूत्र "४८" ॥
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧