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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटोका अ.१ सू. ४० मेघमुने हस्तिभववर्णनम् ४६१ नियोजकः 'जूहबई' यूथपतिः हस्तिममूहनायकः 'विंदपरिवड्डए' वृन्दपरिवर्धकः= निजपरिवारवृद्धिकारकः त्वं हे मेघ ! अन्येषामपि बहूनाम् ‘एकल्लाण' एकाकिनाम् 'एकविहारिणां 'हत्थिकलभाणं' हस्तिकलमानां हस्तिशावकानां च 'आहेवचं' आधिपत्यं स्वामित्वं यावत् कुर्वन् पालयन् विहरसिस्म । ततःखलु हे मेघ ! त्वं 'निच्चप्पमने' नित्यप्रमत्तः विषयादिषु नित्यप्रमादीसन् 'सइंपललिए' सदा प्रल. लितः प्रक्रीडितः क्रीडारसिकः 'कंदप्परई' कंदर्परतिः कामक्रीडापरायणः मोह णसीले' मोहनशील विषयासक्तः 'अवितिण्हे' अवितृष्णा: कामभोगेषु अविरक्तः 'कामभोगतिसिए' कामभोगाषितः, कामभोगाः-पंचेन्द्रिय विषया. स्तत्र प्रसक्तः बहीभिर्हस्तिनीभिर्यावत्संपरिवृतः वैताढय गिरिपादमूले वैताढयकिया करते थे। कारण (यूथपति) तुम हस्ति समूह के नायक कहे जाते थे। (विदपरिवाए) वहां तुम अपने परिवार की वृद्धि करने में लगे रहते थे। (अन्नेसिं च बहूर्ण एकल्लाणं हथिकलभाणं आहेवच्चं जाव विहरसि) समय २ पर अन्य और भी अनेक एकलविहारी हस्तिशावकों का तुम आधिपत्य आदि करते रहते थे। (एसणं तुम मेहा ! णिचप्पमत्ते ) इस के बाद हे मेघ ! तुम विषयादिकों में नित्य मदोन्मत्त होते हुए (सइपललिए) क्रीडा करने में बडे रसिक बन गये (कंदप्परई) और काम क्रीडा में परायण होकर (मोहणसीले) विषयों में तुम्हारी अधिक आसक्ति हो गई थी (अवतण्हे ) यहांतक वह आसक्ति बढी कि कामभोग तृष्णा तम्हारी कभी शांत ही नहीं होती रही (काम भोगतिसिए) अतः तुम कामभोगों में तृषित होकर (बहूहि हत्थीहि (पषुवए) ५५ अभाभा तेभने नियुक्त ४२ता हता, भ3 (यूथपति ) तभने हाथीसोना टोजाना नाय वामां सावता (ता. (विंदपरिवए) त्यो त पाताना परिवानी वृद्धि ४२वामा ५२वामेला २डेता ता. ( अन्नेसिंच वहू णं एकल्लाणं हत्थिकलभाणं आहेवचं जाव विहरसि) वमत मत मी पण था ससा विय२९१ ४२ना। थाना प्रत्याय ५२ शासन वगैरे ४२॥ २हेता ता. (तएणं तुम मेहा णिचप्पमत्ते) त्या२ मा भेध ! तमे विषय वगेरे अमागोमां उभेशा भहभत्त थने (सइयललिए) ४ी ४२वामा भूम०४ २सि गया. (कंदप्परई ) रति म श थने (मोहणसिले ) विषयोमा तभारे बंधारे ५ती भासहित (भाड) ५डी. (अवतण्हे ) ॥ विषयोमा मासठित तभारी साक्षी हे पडया थी तमारी मतृ अहवस Aid नड ७. ( काम भोगतिसिए) मेटा माटे तमे विषय लागानी तान छ। रावत दुषित त२२॥ न. (बहहिं हत्थीहिय जाव संपरिवुडे वेयडगिरिपायमूले)
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧