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________________ ३८० ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे मर्त्यपातालभूमीनां त्रिकं, कुत्रिकं "तात्स्थ्यात् तद्यपदेशः" इति कृत्वा तत्र स्थितं वस्त्वपि-कुत्रिकमुच्यते । कुत्रिकस्य आपणः कुत्रिकापणः। देवाधिष्ठितत्वेन स्वर्गमर्त्यपाताललोकत्रय संभविवस्तुसंपादकहह इत्यर्थः 'कुंतियावण' इति भाषायां, तस्मात् 'रयहरणं रजोहरणं-द्रव्यभाव रजोहरतीति रजोहरणं, त द्रव्यतो धूलिप्रभृति, भावतः कमरजः इत्यर्थः 'पडिग्गह च' प्रतिग्रहं चप्रतिगृह्णाति अशनादिकमरिमन्निति प्रतिग्रह-पात्रं पात्रत्रयं, चतुर्थ-मुन्दकं चेत्यर्थः। अत्र ‘रयहरणं पडिग्गहं च' इत्युपलक्षणम्-अन्येषामपि साधूपकरणानां तथा हिच उवणेह कासवयं च सद्दावेह ) हे माता पिता! मैं कुत्रिकापण से रजो. हरण और पात्र चाहता हूँ आप लाकर दीजिये" कुत्रिकापण को भाषा में "कुनियापण" कहते हैं। कुत्रिकापण का च्युत्पत्तिलभ्य अर्थ इस प्रकार है- कूनां-त्रिकं-कुत्रिक -देवलोक मर्त्यलोक एवं पाताललोक ये तीन कुत्रिक कहलाते हैं "तात्स्थ्यात् तदव्यपदेशः" इस नियम के अनुसार इन तीनों लोकों में रही हुइ जो वस्तुएँ हैं वे भी कुत्रिक शब्द के वाच्यार्थ हो जाती हैं। इस कुत्रिक की जो दुकान होती है वह कुत्रिकपण है। तात्पर्य इसका यह है कि जिस दुकान में त्रिलोक सम्बन्धी समस्त वस्तुएँ ग्राहकजनों को मिला करती हैं वह कुत्रिकापण जो धूली वगैरह द्रव्यरज और कर्म रूप भाव रज को दूर करता है वह रजाहरण का वाच्यार्थ है। जिस में अशनादिक वस्तुएँ रखी जाती हैं वे प्रति ग्रह हैं। प्रतिग्रह शब्द का इस प्रकार अर्थे पात्र होता है। सूत्र में " रयहरण और पडिग्गह" ये दो पद अन्य साधुओं के उपकरणों के रयहरणं पडिग्गहं च उवणेह कासवयं च सदावेह ) 3 भातापिता ! हु त्रिકાપણથી રજેહરણ અને પાત્ર ચાહું છું. તમે મંગાવી આપે. કુત્રિકાપણને ભાષામાં કુત્તિયાપણ” કહે છે. કુત્રિકા પણ વ્યુત્પત્તિ લભ્ય અર્થ આ પ્રમાણે છે કે" कुनां त्रिकं कुत्रिक" हेक्सो, मृत्यु मने पाताmat मा ऋण त्रि हवाय छे. “ तास्थ्यात् तद व्यपदेशः" मा नियम भु०४५ त्राणे सोडानी બધી વસ્તુઓ પણ કુત્રિક શબ્દના અર્થમાં સમાવિષ્ટ થઈ જાય છે. આ કુત્રિકની જે દુકાન હોય છે, તે “કુત્રિકા પણ કહેવાય છે. મતલબ એ છે કે જે દુકાનમાં ત્રણ લોકની બધી વસ્તુઓ ગ્રાહકોને મળે છે, તે કુત્રિકા પણ છે. જે માટી વગેરે દ્રવ્ય રજ અને કર્મરૂપી ભાવ રજને દૂર કરે છે તે રજોહરણ છે. જેમાં આહાર વગેરેની વસ્તુઓ મૂકવામાં આવે છે, તે પ્રતિગૃહ છે. આ રીતે પ્રતિગ્રહ શબ્દને सय पात्र थयो छे. सूत्रमा "रयहरण भने पडिग्गह" मा मे शो साधुએના બીજા ઉપકરણને બતાવનારા છે. સાધુઓના આ બીજા ઉપકરણે આ પ્રમાણે શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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