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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.१ २० मेधकुमारजन्मनिरूपणम् २० मधकुमारजन्मनिरूपणम् २८१ उज्वलं=निर्मलं कान्तिभिर्देदीप्यमान यत् तत्तथा, ततः पदत्रयस्य कर्मधारयः, 'बहुसमसुविभत्तनिचियर णिज्जभूमिभाग' बहुसममुविभक्तनिचितरमणीयभूमिभागं-बहुसमा अतिशयसमः, सुविभत्ता यथास्थानस्थितसर्वावयवः, निचितः= सुभृतः, रमणीयः मनोहरः भूमिभागो=भूप्रदेशो यस्य तत्, 'ईहामिय जाब भत्तिचित्तं' ईहामृग-याबद् भक्तिचित्रं-तत्र-ईहामृगाःकाः, यावच्छन्देन वृषभतुरगनरमकरपक्षिसर्पकिन्नररुरुसरभचमरकुञ्जरवनलता पद्मलताः. इत्येतेषां संग्रहः, तेन तेषां भत्तया शिल्पिद्वाराचित्ररचनया चित्राणि यत्र तत्, 'खंभुग्गय वयरवेइयापरिगयाभिरामं' स्तम्भोद्गतवज्रवेदिकापरिगताभिरामं, तत्र-स्तम्भोद्गता-स्तम्भोपरिगता या वज्रेण वज्ररत्नेन निर्मिता वेदिकाः ताभिः परिगतं व्याप्तम् अत एवाभिरामं परमशोभासम्पन्नं, 'विजाहरजमलजुयलजंतजुत पिव' विद्याधरयमलयुगलयन्त्रयुक्तमिव-विद्याधरयोःस्त्री पुरुषयोः यद् यमलं समश्रेणिकं युगलं-द्वयं तत् शिल्पकला नैपुण्येन यन्त्र-यन्त्रस्थितं संचरिष्णुत्वेन तैर्युक्तमिव बंभम्यमाण विद्याधरयुगलवदृश्यते इत्यर्थः 'अच्चिरत्नों से जड़े हुए थे इसलिये बडे उज्जवल थे। कान्ति से चमकीले थे (बहुसमसुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभाग) इसका भूमि भाग बहुत ही अधिक सम था सुविभक्त था, निचित-भरा हुआ था। और रमणीय था। (इहामिय जाद भत्तिचित्तं) ईहामृगक, वृषभ, तुरग-घोडा, नर, मकर, पक्षी, सर्प, किन्नर रुरु, सरभ,चमर, कुंजर, वनलता पद्मलता इन सबके उसमें शिल्पिद्वारा चित्र अंकित किये गये थे। (खंभुग्गय वयर वेड्या परिगयाभिराम) स्तंभो पर वज्ररत्न से विदिकाएँ बनाइ थीं। इससे यह परम शोभा बना हुआ था। (विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्तं पिव) देखने वालों को यह अत्यन्त चलते हुए विद्याधर युगल (जोडे) के जैसा વગેરે રત્નોથી જડેલા હતા એથી બહુજ ઉજજવલ હતા અને કાન્તિથી ચમકતા હતા. (बहसमसुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभाग) मानो भूमिमा २४ सम (४ सरमा) हतो, सुविनत तो, नियित-मरे भने मना२ हतो. (इहामिय जाब भत्तिचित्तं) डाग, १२, मह, घोस, भास, भा२, पक्षी, साप, न२, २२, सरस, (मष्ट५४) यमर, हाथी, वनसता पता , 24 अधाना त्रिी शिल्पा द्वारा तेभा यित्रित अरेस तi. (खंभुग्गय वयर वेड्या परिगयाभिरामे) थानमा ५२ ही मने रत्न द्वारा हिमा मनावाम मावी हती. मेथी तेयो अत्यंत शोमासपन्न indu su. (विजाहर जमलजुयलजत्तजुत्तं विव) नारने ते भाडे वेगपूर्व न्याय विद्याधरना युगल શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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