SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षि टीका. अ १. १५ अकालमेधदोहदनिरूपणम् २०९ जणियसोम्मख्वे' मेयोलमानवरललितकृण्डलोज्वलितवदनगुणजनितसौम्य रूपः. तत्र प्रखोलमानेदोलायमाने ये वरललितकुण्डले श्रेष्ट सुन्दरकुण्डले ताभ्याम् उज्वलितं प्रकाशमान वदनं मुखं तस्य यो गुण: कान्ति विशेषरूपः, तेन जनितं-सजात सौम्यं शोभनरूपं यस्य सः। पुनरपि स सुरः शरचन्द्रेणो. पमोयते। 'उदिओविव को मुईनिसाए' उदित इव कौमुदीनिशायां-कार्तिकपौणमास्याम, सणिच्छरंगारउज्वलियमज्झभागत्थे शनैश्चराङ्गारो. ज्वलितमध्यभागस्यः शनैश्चरमङ्गयोः उज्वलिता-दीप्यमानः सन् यो मध्यभागे तिष्ठतोति सः, शनिमङ्गलयोर्मध्ये प्रकाशमानः, 'णयणाणंदे' नयनानंद: नेत्रतृप्तिकरः, 'सरयचंदे' शरच्चन्द्र: शारदीय चन्द्र इब. तत्र कुण्डलद्वयमध्यगतं मुखमण्डलं शनैश्वर मङ्गलमध्यगतः कार्तिक पौर्णमास्यामुदितश्चन्द्रइव नयनाऽऽनन्दकारीत्यर्थः । साम्प्रतं मेरुणोपमीयते-'दिव्बोसहिपमाणवरललियकुंडलुजलियवयणगुणजणियसोम्मरूवे) कानों में जो इसके कुंडल थे वे श्रेष्ठ और अधिक सुन्दर थे। तथा हिलाते हुए नगर आ रहे थे। या दाला जैसे प्रतीत होते थे। इन दोनों से इसका मुखमं. डल प्रकाशमान था। इसलिये उसकी कान्ति विशेष से इसका रूप विशेष सौम्य हो गया था। (उदिओ कोमुई निसाए) अतः इसका मुखमंडल (कार्तिक की पूर्णिमा में उदित हुए तथा (सणिच्छरंगार उज्वलिय मज्झभागत्थे) शनैश्चर और मंगवग्रह के बीच में प्रकाशमान (णयणाणंदे) नैत्रतृप्ति कारक (सरयचंदे इव) शरत्कालीन चन्द्रमा के जैसा आनदकारी था। तात्पर्य इसका यह है कि जिस प्रकार शनैश्चर और मंगल ग्रह के मध्य में रहा हुआ कार्तिक पौर्णमासी का चन्द्रमा नयनानन्दकारी होता है उसी तरह दोनों कुंडलों के मध्य में रहा हुआ इसका मुखमंडल भी नेत्रों को सानहमा भजन रह्यो इतो. खोलमागवरललियकुडलुजलियवयण गुणजणियसोम्मरूवे) अनमा परेका हु, श्रेष्ठ मने ५५ स२ तi. ते ડોલતાં હતાં. એથી તે હીંચકા જેવા લાગતા હતા. તેનું મુખમંડળ બન્ને કુંડળેથી દીપી ઉઠયું હતું. એનાથી વિશેષ કાન્તિવાળા દેવનું રૂપ વિશેષ સોમ્ય લાગતું હતું. (उदिओ कोमुई निसाए) मेटा भाटे तेनु भुलभ ति यूनिभाना हिवसे अध्य पामेला (सणिच्छरंगारउज्जलियमज्झभागत्थे) शनि अन मग अडानी भध्ये Adu (सरयचदे इव) ५२६teीन यद्रनी म [णयणाणंदे] नेत्रोने तृति આપનાર અને આનંદ પમાડનાર હતું. તાત્પર્ય એ છે કે જેમ શનિ અને મંગલ ગ્રહોની વચ્ચે કાર્તિક પૂર્ણિમાને ચંદ્રનયનેને આનંદ આપનાર હોય છે તેમજ બને हुनानी वय २९ तेनु भुपम नेत्रोने मान मापना तु. (दिव्योसहि શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy