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________________ १७८ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे वर्जिता अत एव दुर्बला भोजनादित्यागात्, 'किलंता' क्लान्ता=परमग्लानि संपन्ना, 'ओमंथियवयणनयणकमला' ओमंथियवदननयनकमला, 'ओमंथिय' इति अधः कृतं नीचैःकृतं वदननयनकमलं यया सा, 'पंडरियमुहा' पाण्डुरितमुखा-पीतवर्णवदना, अत एब 'करयलमलियब चंपगमाला णित्तेया' करतलमलिता इव चम्पकम्पमाला निस्तेजाः हस्ततलमादितचम्पकपुष्प मालेव तेजो वर्जिता,तस्मात् 'दीणविवण्णवयणा दीनविवर्णवदना, तत्र दीनं-दुःखितं, विवर्ण शोभारहितं मुखं यस्याः सा, तथा-'जहोचियपुप्फगंध. मल्लालंकारहारं अणभिलसमाणी' यथोचितपुष्पगन्धमाल्यालंकारहारं अनभिलपन्ती, तत्र यथोचितं यथायोग्यं राज्ञीधारणयोग्यं यथास्यात्तथा पुष्पाणि मालनी प्रभृतीनां, गन्धं कोष्ठपुटादीनां, माल्यं जात्यादि पुष्पाणां, अलंकार-कटक कुण्डलादिरूपं, हारम् अष्टादशसरिकादिलक्षणं तत्सर्वम्अनभिलान्ती अनि. च्छन्ती 'कीडारमण किरियं च परिहावेमाणी' क्रीडारमण क्रियां च परिहापवह बहुत अधिक दुर्बल हो गई (किलंता) खानेपोने में भी उसे अरुचि आ गई (ओमंथियवयणनयणकमला) मुख और नेत्र उसके नीचे रहने लग गये (पंडुरियमुहा) शरीर की कांति फीकी पड जाने के कारण उसका मुख पीला पड गया (करयलमलियच चंपगमालाणित्तेया) हस्त तल से मर्दित चंपक पुष्ष की माला के समान वह तेज रहित हो गइ-(दोण. विवण्गवयणा) इसीलिये उसके मुखपर दीनता और-शोभा रहितता स्पष्ट प्रतीत होने लग गई । (जहोचियपुप्फगंधमल्लालंकारहारं अभिलसमाणी) उस रानी के धारण करने योग्य मालनी आदि पुण्पों में कोप्टपुट आदि के गंध में जात्यादि पुष्पों की माला में कटककुडल आदि रूप अलकार में तथा १८ अढारह लरवाले हार आदि में कोई रुचि नहीं रही-(क डारमण किरियं च परिहावेमाणी) सखियो के साथ हास्य विनोद करना आदिरूप थने ते भून भनेर था . (किलंता) भावापोवानी तमा ते २५३.य मताat aroll, (आमंधियवयण नघगकसला) तेनां भी मने नेत्र नीयां वा साज्यां, (पंडरियमुहा) श६२नी तिी , तेथी तेनु मां पापडी आयु तु. (करयलमलियध्व चंपगमालाणित्तेया) उधेजीमा यो गयेसा पानी पानी भाजानी म ते दी थ 5. (दीण विवण्णवयणा) तेथी हैन्य सने शामा २हितता तेना भी 6५२ स्पष्ट रीते मातi Sai. (जहोचियपुप्फगंधमल्लालकारहारं अणभिलसमाणी) यभेदी वगेरे सी, अष्टपुट क्रेनी सुपास, त्याहि पुष्पानी भा७॥ કડાકુંડળ વગેરે જેવાં ઘરેણુઓ, અઢાર (૧૮) લડીવાળા હારે વગેરે કોઈપણ ધારણ ४२१॥ योग्य उत्तम वस्तुभां तेनीछा न २६ी. (कीडारमण किरीयं च परिहावेमाणि) શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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