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________________ १२८ ज्ञाताधर्म कथाङ्गसूत्रे मालती चम्पकमाधपीभिर्वल्लीभिः परिवेष्टितरनानस्थाने 'णाणामणिरयणभत्तिचित्तसि' नानामणिरत्नभक्तिचित्रे विविधमणिरत्नानां भक्त्या=सिंहगजादिरूपया चित्रं यस्मिन् एवम्भूते पहाणपीढंसि' स्नानपीठे स्नानार्थ स्थापितासने 'मुहनिसण्णे सुखलिपणः सुखोपविष्टो भूपः 'सुहोदएहि' सुखोदकैः नातिशीतोष्णजलैः 'पुष्फोदए हि पुप्पोकैः-पुष्परससमन्वितः, गंधोद ए हि' गन्धोदकः श्रीखण्डादिमिश्रितजलैः, 'मुद्धोदएहि शुद्धोदकैः निरवद्यजलैः। 'पुणो पुणो' पुनःपुन वारं वारं 'कल्लाणगपवरमजणविहीए' कल्याणकावरमज्जनविधिना सुखजनकनिपातितवारिधारा परम्पराभिर्माङ्गलिकमज्जनविधिना स्नानप्रकारेण 'मज्जित: स्नापितः। 'तल्थ' तत्र स्नानकाले 'को उयसरहिं' कौतुकशतैःकौतुकानां शतानि कौतुकशतानि शरीररक्षायै दृष्टिदोष निवारणार्थ कजलतिलकादीनि क्रीडाशतानि तैः, 'बहुविहे हिं' बहुविधैर्युक्त 'कल्लाणगपवरमजणावसाणे' कल्याण रयणभत्तिचित्तंसि अनेक मणि तथा रत्नों की रचना द्वारा जिसमें सिंह गज आदि के चित्र बने हुए हैं ऐसे (हाणपीहँसि) स्नान पीठ पर स्नान करने के लिये स्थापित आसन पर-(सुहनिसण्णे) सुखपूर्वक बैठकर (महोदएहि) न अधिक गरम न अधिक शीतल ऐसे जल से, (पुप्फोदएहिं) पुष्परससम वित जल से, (गंधोदएहि) श्रीखंड आदि मिश्रित जल से (शुद्धोदकैः) और शुद्ध जल से उन्होंने (पुणोपूणो) बार २ (कल्लाणगपदरमज्जणवि. हीए) शरीर में सुखप्रतीत हो इस रूप से छोडी गई जल की धारा से मांगलिक मंजन विधि के अनुसार (मज्जिए) स्नान किया (तत्थबहुविहेहि कोउयसएहि) फिर बहुविध कौतुकशतों से युक्त हुए-शरीर रक्षा के लिये दृष्टि दोष निवारणार्थ कजल तिलक आदि रूप सैकडो कौतुक से समन्वित हुए उन राजाने (कल्लाणगपवरमजणावसाणे) उस मांगમાલતી ચંપો, તેમજ માધવીની લતાઓથી પરિવેષ્ટિત અને જુદા જુદા સ્થાને મૂકેલા (णांणामणिरयणभत्तिचित्तसि) भने तन मणि रत्नानी श्यना ५ मा सिंह, डाथी वगेरेना यित्री मनाच्या छ, मेवा (पहाणपीमि) नावाना १४४ ५२ न्हावा भाटे (सहनिसणे) २२रामथी मेसीने (सुहोदएहिं) ।४२१२९ (पुप्फोदएहि) साना २सा (गंधोदएहिं) श्री५ (यन) वगेरेथी मिश्रित, (शुद्धोदकैः) मन नि gl43 तेमाल (पुणो पुणो) वारंवार (कल्लाणगपवर मज्जण विहिए) शरी२ने सु५ मापे मेवी धाराथी मन विधि प्रमाणे (मज्जिए) स्नान ज्यु. (तत्थबहुविहेहिं कोउयस एहिं) त्या२०।६ भने तन से 31 औतु मेटसे કે શરીરની, દૃષ્ટિ દોષ નજર વગેરેથી રક્ષા કરવા માટે કાજળ તિલકરૂપ સેંકડો औतु युत थये ते २०नये (कल्लाणगपवरमजणावसाणं) ते भुज्य भाग શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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