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________________ च पारावतस्य= ज्ञाताधम कथाङ्गसूत्रे कोमलोन्मीलने, फुलंच तत् उत्पलं - पद्मं, फुल्लोत्पलं, कमलश्च हरिणविशेषः, तयो द्वे फुल्लोत्पलकमल, तयोः कोमलं सुकुमारं उन्मीलनं दल नयन विकाशो यस्मिन तस्मिन्, कमलपत्र हरिणनेत्रयोर्विकाशे जाते - इत्यर्थः ' अहा' अथ रात्रि गमनानन्तरं 'पंडुरे' पांडुरे शुक्लीभूते 'पभाए' प्रभाते, प्रातःकाले 'रत्तासोगपगासकिय सुमुहगुंजद्धरागबन्धुजीवगपारावयचलणनयणपरहूय सुरत लोयण जासुयण कुसुमजलियन लगत वणिज्नकल सिंह गुलयनिगरख्वाइ रेगरे हन्तसस्सिरीए' रक्ताशोकप्रकाश किंशुकशुकमुख गुञ्जार्द्धरागबन्धुजीव कपारावत चरणनयनपरभृतसु रक्तलोचन - जपाकुसुम - ज्वलितज्वलन तपनीय कलशहिङ्गुलकनिकर रूपातिरेक रेहतराजितस्वश्री के = रक्ताशोकस्य प्रकाशः कान्तिः, किंशुकं = पलाशपुष्पं च, शुकस्य मुखं च, गुञ्जार्धरागं च बन्धुजीवं कपोतस्य चरणनयने च, परभृतस्य = कोकिलस्य सुरक्तं लोचनं च, जपाकुसुमं च, ज्वलितज्वलनः अदीप्ताग्निश्च तपनीयकलशः = सौवर्णघटथ, हिङ्गुलको वर्णविशेषः, तस्य निकरश्च = समूहः, एतेषां रूपातिरेकेण रूपसादृष्येन राजमाना स्वा स्वकीया श्रीवर्ण लक्ष्मीर्यस्य स तथा तस्मिन, रक्तमण्डल(फुल्लुप्पल कमलकोमलुम्मिलियंमि ) - हरिण विशेष के नेत्र अच्छी तरह से खिल चुके थे (अहा) रात्रि हटने के बाद (पंडुरे पभाए) जब धीरे धीरे प्रातः काल बिलकुल पंडुरस (फेवद ) स्पष्टरूप से चमकने लगा था और जब (रत्तासोगपगास विसुय, सुय मुह गुंजद्धराग, बंधुजीवग, पारावयचलणनयण, परहत सुरत लोयण जांयण कुसुम, जलिय जलण, तवणिज्जकलस हिंगुलय निगर रुवाइरेगरेहंत सस्सिरीयए) रक्त अज्ञोक की कान्ति के, पलाश पुष्प किंशुक के मुख के गुजार्द्ध के राग के बंधुजीवक के, पारावत (कबूतर के चरण और नयन के, कोयल के सुरक्त लोचन के, जपाकुसुम के प्रदिप्त अग्नि के सौवर्ण कलश के, तथा हिंगुल के समूह के रूप के (फुलुप्पल कमल कोमलुम्मिलियंमि) तथा हरिषु विशेषना - नेत्र सुंदर रीते मोट्यां हुतां, (अहा) रात्रि पसार थतां (पंडुरे पभाए) न्यारे धीभेधीमे स्पष्ट३ये अलात अाशन थयुं, भने (रत्तासोगपगास, किंसुय, सुय मुह गुंजद्धराग, बधु जीवग, पारावय चलणनयण, परहत-सुरत लोयण जानुयण-कुसुम, जलिय - जलण, तवणिज्ज - कलस - हिंगुलय निगर रुवाइरेगरेहंत सस्सिरीए) न्यारे २४त અશાકની કાન્તિ જેવું, કેસૂડા જેવું, ગુંજા રંગ જેવું ખંજીવક જેવું કબૂતરના ચરણુ અને सांग नेवु” કાયલની ખૂબ લાલ આંખ भेवु, न्या પુષ્પ જેવું, પ્રજવલિત અગ્નિ જેવું, સેનાના કળશ જેવુ १२२ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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