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भगवतीसूत्रे सलेश्याः यावत्पदेन स्त्रीवेदकपुरुषवेदकयोः संग्रहो भवति, ततश्चैते सर्वेऽपि क्रियावादिनोऽपि भवन्ति अक्रियावादिनोऽपि भवन्ति अज्ञानिकवादिनो वैयिकवादिनचापि भवन्ति विलक्षण तादृश परिणामवत्त्वादिति । 'अवेदगा जहा अलेस्सा' अवेदकाः सामान्यतो वेदरहिता जीवाः अलेश्वजीववदेव केवलं क्रियावादिनो भवन्ति न तु अक्रियावादिनो नो अज्ञानिकवादिनो नो वैनयिकवादिनो वा भवन्तीति भावः, 'सकसाई जाव लोभकसाई जहा सलेस्सा' सकपायिनो यावत् लोभकषायिनः सले. श्यजीवदेव क्रियावादिनोऽपि अक्रियावादिनोऽपि अज्ञानिकवादिनोऽपि वैनयिकवादिनोऽपि मान्तीति, यावत्पदेन क्रोधकायि मानकषायि मायावषायिनां ग्रहणं भवतीति : 'अफसाई जहा अलेस्सा' अषायिनोऽलेश्यवदेव केवलं क्रियाजीवों के जैसे क्रियावादी भी होते हैं अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं। क्यों कि इनके ऐसे ही विलक्षण परिणाम होते हैं। यहां यावत्पद से स्त्री वेदक और पुरुष वेदक इनका ग्रहण हुआ है। 'अवेदगा जहा अलेस्ता' सामान्य से वेद रहित जीव अलेश्य जीवों के जैसे केवल क्रियावादी ही होते हैं। अक्रियावादी नहीं होते हैं, अज्ञानवादी नहीं होते हैं और वैन यिकवादी भी नहीं होते हैं। ‘सकसाई जाव लोभकलाई जहा सलेस्सा' सकषायी जीव यावत् लोभकषायी जीव सलेश्य जीवों के जैसे क्रियावादी भी होते हैं और अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं। यहाँ यावत् पद से क्रोध कषायी मान कषायी और माया कषायी जीवों का ग्रहण हुआ है। 'अकसाई લેશ્યાવાળા જીવોના કથન પ્રમાણે કિયાવાડી પણ હોય છે, અક્રિયાવાદી પણ હોય છે, અજ્ઞાનવાદી પણ હોય છે, અને વૈનાયિકવાદી પણ હોય છે. કેમ કે તેના પરિણામે એવા વિલક્ષણ જ હોય છે. અહિયાં યાવત્પદથી श्रीवgum मने ५३५३६ । घडप ४२।या . 'अवेदगा जहा अलेस्सा' સામાન્યથી વેદરહિત છે અલેશ્ય જીવન કથન પ્રમાણે કેવળ ક્રિયાવાદી જ હોય છે, અક્રિયાવાદી હોતા નથી તથા અજ્ઞાનવાદી પણ હોતા નથી અને वैनायी पडत नथी. 'सकसाई जाव लोभकसाई जहा सलेस्सा' કષાયવાળા જ યાવત્ ભકષાયવાળા છ લેશ્યાવાળા જીના કથન પ્રમાણે ક્રિયાવાદી પણ હોય છે, અક્રિયાવાદી પણ હોય છે, અજ્ઞાનવાદી પણ હોય છે. અને વેયિકવાદી પણ હોય થ. અહિયાં યાવત પદથી માનકષાય વાળા, માયાકષાયવાળા, અને લોભકષાયવાળા, જી ગ્રહણ કરાયા છે,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭