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भगवती सूत्रे
'तेउलेस्से हि विचत्तारि उद्देगा ओहियसरिसा' तेजोलेश्यैरपि तेजोलेश्य भवसिद्धिकासुरकुमारादिकैरपि चत्वार उद्देशका औधिकसदृशाः कर्तव्याः || पञ्चचत्वारिंशत्तमात् अष्टचत्वारिंशत्तमपर्यन्ता उद्देशकाः समाप्ताः ॥४५- ४८ ॥
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'पहले सेहि वि चचारि उद्देगा' पदमलेश्यामाश्रित्यापि पद्मलेश्य भवसिद्धिक तिर्यक् पञ्चेन्द्रियादिकमाश्रित्यापि कृतयुग्मादिरूपा श्रुत्वार उद्देशकाः कर्त्तव्याः । एकोनपञ्चाशत्तमाद् द्विपञ्चाशत्तमपर्यन्ता उद्देशका समाप्ताः । ४९-५२
'एवं काउलेस्सेहिं वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा' इत्यादि । इसी प्रकार से कापोतलेश्य भवसिद्धिक नैरयिकादिकों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक करने योग्य होते हैं । इस प्रकार ४१ वें उद्देशक से लेकर ४४ वें उद्देशक तक के ४ उद्देशक ४१ वे शतक में समाप्त हुए । ४१, ४१-४४॥
'ते उलेस्सेहिं विचत्तारि उद्देगा ओहिय सरिसगा' इत्यादि । तेजोलेश्य भवसिद्धिक असुरकुमारादिकों के सम्बन्ध में भी चार उद्देशक अधिक उद्देशक के जैसे करने योग्य होते हैं । इस प्रकार ४५ वे उद्देशक से लेकर ४८ वें उद्देशक तक के ४ उद्देशक ४१ वे शतक के समाप्त हुए । ४१, ४५-४८॥
'पहले सेहिं विचत्तारि उद्देगा' इत्यादि'
पद्मलेश्य भवसिद्धिक तिर्यक्पंचेन्द्रियादिकों को लेकर भी कृतयुग्मादिरूप चार उद्देशक कर लेना चाहिये। इस प्रकार ४९ वे उद्देशक से लेकर ५२ वे उद्देशक तक के ४ उदेशक ४१ वे शतक में समाप्त हुए ४१, ४९-५२ ॥
'ded सेहिं वि चत्तारि उद्देगा ओहिय खरिसगा' इत्याहि
ટીકા —તેજોવૈશ્યા ભવસિદ્ધિક નૈરયિકાના સબંધમાં પણ ચાર ઉદ્દેશાએ ઔદ્યિક ઉદ્દેશાના કથન પ્રમાણે કહી લેવા જોઈ એ.
આ રીતે પિસ્તાળીસમા ઉદ્દેશાથી લઇને અડતાળીસમા ઉદ્દેશા સુધીના ચાર ઉદ્દેશાઓ સમાપ્ત ૫૪૧-૪૫ થી ૪૮ાા
ટીકા
પંચેન્દ્રિયને લઈને
'पहले से िविचत्तारि उदेसगा' इत्याहि પદ્મલેશ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક તિય પણ કૃતયુગ્મ વિગેરે રૂપે ચાર ઉદ્દેશાએ ખનાવીને સમજી લેવા. આ રીતે આગણપચાસમા ઉદ્દેશાથી પર ખાવન સુધીના ચાર ઉદ્દેશાઓ सभाप्त ॥४१-४५ - थी पा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭