SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 733
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१० भगवतीसूत्रे अंतं करें ति' हे भदन्त ! यदि ते जीवाः सक्रियाः तदा तेनैव भवग्रहणेन सिद्धयन्ति यावदन्तं कुर्वन्ति अत्र यावलादेन बुद्धयन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वास्यन्ति सर्वदुःखानामित्यस्य ग्रहणं भवतीति प्रश्नः, भगानाह-'णो इणढे सम?' नायमर्थ: समर्थः । ते तेनै भवग्रहणेन न सिद्धयन्ति ५ इति भावः । ___ 'रासिजुम्म कडजुम्म असुरकुमाराणां भंते ! को उववज्जति' राशियुग्म कृतयुग्मासुरकुमाराः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते किं नैरपिकेभ्य आगत्योत्पधन्ते यावदेवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते इति प्रश्ना, उत्तरमाह-अतिदेशद्वारेण 'जहेव' इत्यादि सकिरियानो अकिरिया' हे गौतम ! ये क्रिया सहित ही होते हैं क्रिया रहित नहीं होते हैं । 'जह सकिरिया तेणेव भवरगहणेणं सिझंति जाव अंत करेंति' हे भदन्त ! यदि क्रिया सहित ही होते हैं तो क्या वे उसी भव से सिद्ध हो जाते हैं यावत् अन्त कर देते हैं ? यहां यावत्पद से 'बुद्धय ते, मुच्यन्ते परिनिर्वास्यन्ति सर्व दुःखानाम' इन पदों का ग्रहण हुआ है। उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'जो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थित नहीं हुआ है। इस कारण ये भी इसी भव से न सिद्ध होते हैं न बुद्ध होते हैं न मुक्त होते हैं न परिनिर्वात होते हैं। न समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। 'रासिजुम्न काडजुम्म असुरकुमाराण भंते ! को उववज्जति' हे भदन्न ! राशियुग्म कृतयुग्म राशिपमाण असुरकुमार किस स्थान विशेष से आकर के उत्पन्न होते हैं? क्या वे नरयिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? हणेणं सिज्जति जाव अंत करें ति' भार या सहित ४ डाय છે, તે શું તેઓ એજ ભવમાં સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી લે છે? બુદ્ધ થઈ જાય છે? મુકત થઈ જાય છે? યાવત્ સર્વ દુઃખને અંત કરી દે છે? અહિયાં યાવ तथा बुद्धयन्ते, मुच्यन्ते परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानाम्' मापहानी संग्रह थयो छ. २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४४ छ -'जो इणद्वे समटे' 3 गोतम ! मा અર્થ સમર્થિત થયેલ નથી. તેથી તેઓ એજ ભવમાં સિદ્ધ થતા નથી. મુકત થતા નથી પરિનિર્વાત થતા નથી, અને સઘળા દુઃખેડને અંત કરતા નથી. _ 'रासिजुम्म कडजुम्म असुरकुमाराण भंते ! कओ उववज्जति' मापन શશિયુગ્મ રૂપ કૃતયુ રાશિ પ્રમાણ અસુરકુમાર કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? શું તેઓ નરયિકામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા તિર્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અતિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy