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________________ -- - प्रमेयचन्द्रिका टीका २०३७ अ. श.१६ संशिमहायुग्मशतम् 'जहा' इत्यादि, 'जहा एएसिं चेव ओहियसयं तहा कण्हलेस्ससयंपि' यथा एतेषामेव अभवसिद्धिकानामेवौधिकशतं पञ्चदशं शतं तथा कृष्णलेश्यामवसि. दिकशतमपि अस्यैव चत्वारिंशच्छतकस्य पञ्चदशे शते यथा औषिका भवसिद्धिक संक्षिपञ्चेन्द्रियाणामुपपातादिः कथित-स्तेनैव रूपेण कृष्णछेश्यामवसिद्धिकानामपि उपपातादयो ज्ञातव्याः। औषिकामवसिद्धिकापेक्षया कृष्णलेश्याभवसिद्धिकशते यद्वैलक्षण्यं तत् स्वयमेव सूत्रकार पाह-'नवरं' इत्यादि, 'नवरम्-विशेष स्वयम्'ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा' ते खलु भदन्त ! जीवाः किं कृष्णलेश्यावन्तो भवन्तीति प्रश्नः । उत्तरमाह-"हंता' इत्यादि 'हंता कण्हस्सा ' हन्त हे गौतम ! ते जीवाः कृष्णलेश्यावन्तो भवन्तीत्युत्तरम् ‘संचिट्ठणा ठिईय जहा कण्डलेस्सासए' प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतम से कहते हैं-'जहा एएसिं चेय ओहियसयंतहा कण्हलेस्स सयं पि' हे गौतम! जैसा इन अभवसिद्धिकों का औधिक शतक कहा गया है उसी प्रकार से इनका यह कृष्णलेश्या शतक भी कह लेना चाहिये । अर्थात् ४० वे शतक के १५ वें शतमें जिस रीति से औधिक अभवसिद्धिक संज्ञीपश्चेन्द्रियों के उपपात आदि कहे गये हैं उसी रीति से कृष्णलेश्यावाले अभवसिद्धिक संज्ञीपञ्चेन्द्रियों के भी उपपात आदि कह लेना चाहिये। औधिक अभवसिद्धिकों की अपेक्षा इनमें जो अन्तर है वह इस प्रकार से है-'ते णं भंते ! जीवा कण्इलेस्सा' हे भदन्त ! ये जीव क्या कृष्णलेश्यावाले होते हैं ? 'हंता, कण्हलेस्सा' हां, गौतम! ये जीव कृष्णलेश्यावाले होते हैं। 'संचिट्ठणा ठिईय जहा कण्ह लेस्सासए' इनका अवस्थानकाल और आयुकाल जैसा અથવા દેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અતિદેશ દ્વારા આ પ્રશ્નને ઉત્તર मापतi प्रभुश्री गौतमस्वामीन छ -'जहा एएसिं चेव ओहियसयौं तहा कण्हलेस्ससय पि' गौतम ! २ प्रमाणे २५॥ सससिद्धिीनु भौघि शत કહેલ છે, એ જ પ્રમાણે તેના સંબંધમાં આ કૃષ્ણલેશ્યા શતક પણ કહેવું જોઈએ. અર્થાત્ ચાળીસમા શતકના ૧૫ પંદરમાં શતકમાં જે પ્રમાણે ઔધિક અભવસિદ્ધિક સંપત્તિ પંચેન્દ્રિયના ઉપપાત વિગેરે કહેવામાં આવ્યા છે. એજ રીતે કલેશ્યાવાળા અભાવસિદ્ધિક સંગ્નિ પંચેન્દ્રિયેના ઉપપાત વિગેરે પણ કહેવા જોઈએ. ઔવિક અભવસિદ્ધિકવાળાઓની અપેક્ષાએ આમાં જે मत२ मा छ, a ॥ प्रमाणे छे. 'वेण भंते ! जीवा कण्हलेस्सा' मापन सातश्यावा डाय छ ? उत्तरमा प्रभुश्री ३ छे ४-'हंता गोयमा ! कण्हलेस्सा' । गौतम ! लो वेश्यावाणा डाय छ, 'संचिटणा ठिई य भ०८७ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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