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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०४. अ. श.१ कृ.क. संक्षिपञ्चेन्द्रियोत्पातः ६३३ प्रकृतीनां बन्धका वा भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा ! इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'सत्तविहबंधगा वा जाव एगविहबंधगा चा' सप्तविधर्मप्रकृतीनां बन्धका वा संशिएश्चेन्द्रियाः यारत् एकविधवन्धका वा, अत्र यावत्पदेन अष्टविधबन्धका वा पदिधबन्धका वा, एतयोः संग्रहो भवतीति। 'तेणं भंते ! जीवा कि आहारसन्नोव उत्ता जाव परिमहसनोव उत्ता' ते खलु भदन्त ! जीवा संज्ञिपश्चेन्द्रियाः किमाहारसंज्ञोपयुक्ता भान्ति यावत्परिग्रहसंज्ञोपयुक्ता वा भवन्ति अन यावत्पदेन भयमथुनसंज्ञयोः परिग्रहो भवति 'नो सनोवउत्ता वा' नो संशोपयुत्ता वा भवन्ति ? 'सव्वत्थ पुच्छा भाणिया' सर्वत्र पृच्छा-प्रश्नरूपा भाणतव्या, पृथक् पृथग्ररूपेण सर्वरश्न: करणीय इति । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा!' हे गौतम ! 'आहारसन्नो उता जाब नो सन्नोवउत्ता' आहारसंज्ञोपहैं ! 'छविह बंधगा वा' छ प्रकार की कर्म कृतियों के बन्धक होते हैं अथवा 'एगविह बंधगा वा' एक प्रकार की कर्म प्रकृतियों के बंधक होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोधमा ! ये जीव 'सत्त विहा बंधा वा जाव एवह बंधगावा' सात प्रकार की कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं यावत् एक प्रकार की कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं। यहाँ यावत् शब्द से 'अष्टविधबंध का वा षविध बन्धका वा' इन पदों का संग्रह हआ है। तेज भंते ! जीवा कि आहारसन्नोवत्ता जाय परिगहन्नोव उत्ता' हे भदन्त ! वे संजीपंचेन्द्रिय जीव क्या आहारसंज्ञोपयुक्त यात् पविग्रह संज्ञोपयुक्त होते हैं? यहां यावत् पद से 'भय मैथुन संज्ञाओं का ग्रहण हुआ है। अथवा 'नो सन्नोव उत्ता वा' ये नो संज्ञोपयुक्त होते हैं ? इस प्रकार 'सव्वस्थ पुच्छ। भाणियन्दा पृथक् पृथक रूप से प्रश्न कर लेना चाहिये। डाय छ ? अथवा 'छविह बधगा वा' ७ प्ररनी प्रतियाना मध २वावाणा डाय छे? अथवा 'एगविहब बगा वा' 2 १२नी मतिना मध ४२वा डाय छे. १ 41 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४९ छे ४-'गोयमा ! 3 गौतम ! वे 'सत्तविह बधगा वा जाव एगविह धगा वा' सात प्रा२नी मप्रतियोनी म ४२११॥ ५९ हाय छे. महियां यावत् १५४थी 'अष्टविध बंधगावा षड्विध बधगावा' मा पहानी संग्रह यया छ 'ते ण भते ! जीवा किं आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता' 3 समन त सही पायन्द्रिय
શું આહાર સંજ્ઞોપગવાળા હોય છે ? યાવત્ પરિગ્રહ સંજ્ઞા પગવાળા હોય છે? અહિયાં યાસ્પદથી “ભય અને મૈથુન સંજ્ઞાઓ ગ્રહણ કરવામાં मावत छ. अथवा 'नोसन्नोवत्ता वा' मा मोसशोपयोगवाजा डाय छ ? मा रीत 'सव्वत्थ पुच्छा भाणियवा' हा गु. ३५थी 30 देवा नये.
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭