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________________ ५४० भगवतीसूत्रे एगिदियाण मंते ! को उववज्जति' कल्योजकल्योजैकेन्द्रियाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते कि नैरपिकेभ्य इत्यादि पूर्वप्रकारेणैव प्रश्ना, उत्तरमाह-'उबवाओ तहेव' उपपात स्तथैव कृतयुग्मकृतयुग्म प्रकरणपठित एवं ज्ञातव्यः। 'परिमाणं पंव वा, संखेज्जा वा-असंखजा वा, अणंता वा, उज्जति परिमाणं पञ्च वा, संख्याता वा असंख्याता वा अनन्ता वा उत्पद्यन्ते इति । 'सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो' शेष परिमाणातिरिक्त सर्व तथैव कृतयुग्म प्रकरणपठितमेव यावदनन्तकृत्व इति १६ । उत्पन्न होने के परिमाण ६ अथवा संख्यात अथवा असंख्यात अथवा अनन्त है 'कलि भोग कलि भोग एगिदियाणं भंते ! को उववज्जति' कल्योज कल्योज राशिप्रमित एकेन्द्रिय जीव हे भदन्त ! किस स्थान विशेष से आकरके उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्थग्योनिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'उववाओ तहेव' 'हे गौतम ! कृतयुग्म कृतयुग्म राशिप्रमित एकेन्द्रिय जीवों के प्रकरण में जैसा उपपात के सम्बन्ध में कहा गया है वैसा ही यहां पर भी उपपात के सम्बन्ध में कथन जानना चाहिये यहां-'परिमाणं पंच वा संखेज्जावा असंखेज्जा वा अणंता वा उववज्जति' उत्पन्न होने का परिमाण पांच अथवा संख्यात अथवा असंख्यात अथवा अनन्त है। 'सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो परिमाण कथनके अतिरिक्त और सब कथन यहां पर સમયમાં ઉત્પન્ન થવાનું પરિણામ ૬ ૭ અથવા સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત अथवा मन त छे. 'कलिओगकलिआग एगिदियाण भ'ते ! क ो उववज्जंति' दया। કાજ રાશિવાળા એ કેન્દ્રિય જીવે છે ભગવાન કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? શું તેઓ નરયિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? તિર્યંચામાથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં छ-'उबवाओ तहेव गौतम ! तयुग्म तयुम शिवाण न्द्रिय જેના પ્રકરણમાં ઉપપાતના સંબંધમાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં ઉપપાતના સંબંધમાં કહેવું જોઈએ. અહિયાં 'परिमाण पंच वा संखेज्जा वा असं खेज्जा वा अणता वा उअवज्जति' परिभा पाय 41 यात अथवा अध्यात अथवा मानत छ. 'सेस तहेव जाव अणत खुत्तो' परिभाना - शिवायनु सघ ४थन मडियां तथा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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