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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ. १ सू०१ राशि क्रमेणैकेन्द्रिजीव निरूपणम् ५०७ सेतं तेओग दावरजुम्मे' ये खलु तस्य राशेरपहारसमयाः ज्योजा भवन्ति तस्मात्कारणात् स राशि विशेषः त्रयोज द्वापरयुग्म इति कथ्यते स च जघन्यत चतुर्दशात्मकः (१४) इति ७ । 'जें णं रासी चउकरणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए' यः खलु राशि चतुष्केणापहारेणापहियमाण एक एवं पर्यवसितो भवेत् तथा - ' जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया तेओगा सेर्त्त तेओगक लिओगे' ये खलु तस्य राशेरपहारसमया त्र्योजा भवन्ति, तस्मात् कारणात् स राशिविशेषः ज्योजकल्योज इत्यभिधीयते स च जघन्यत त्रयोदशात्मकः (१३) इति ८ । 'जे णं रासी चउक्कणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जबसिए' यः खलु राशि चतुष्केणापहारेणापहियमाण श्चतुः पर्यवसितो भवति तथा - 'जेणं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा से तं दावरजुम्मकडजुम्मे' समया तेओगा सेसं तेओगदावर जुम्मे' ७ जिस राशि में से चतुष्क के अपहार से अन्त में दो बचते हैं और अपहार समय जिसके श्योज रूप होते हैं ऐसी वह राशि ज्योजद्वापरयुग्म रुप होती है इसका जघन्य प्रमाण १४ संख्या रूप है। 'जे णं' रासी चक्करणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगज्जबसिए' जो राशि चतुष्क से अपहृत होने पर अन्त में एक बचाती है और 'जेणं तस्स रासिस्स अवहारसमया तेओगा सेतं ते ओग कलिओगे' अपहार समय जिसराशि के ज्योजरूप होते हैं ऐसी वह राशि योज कल्पोज रूप होती है । इसका जघन्य प्रमाण १३, संख्यारूप होता है । 'जे णं रासी चक्करणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए' जो राशि चार से विभाजित होकर अन्त में चार बचाती है तथा 'जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा सेन्तं दावरजुम्म कडजुम्मे' तेओगा सेच तेओगदावरजुम्मे' ७, ने राशिमांथी थारनो व्यहार ४२वाथी છેવટે એ ખર્ચે છે, અને જેના અપહારના સમય ચૈાજ રૂપ હાય છે, એવી તે રાશી ચૈાજ દ્વાપરયુગ્મ રૂપ હાય છે. તેનુ જધન્ય પ્રમાણ ૧૪ ચૌદ સખ્યા ३५ हाय छ, 'जेणं' रासी चक्करण अवहारेण अवहीरमरणे एगपज्जवलिए' ने राशी यारनी सभ्याथी अपहार थवाथी हेवटे थे! मये छे, अने' जेण तर रासिह अवहारसमया तेओगा सेत्तं तेओगकलिओगे' भने नेनेो व्यहारने સમય ચૈાજ રૂપ હોય છે. એવી તે રાશી વ્યે જ કલ્યાજ રૂપ હાય છે. તેનું प्रमाणु १३ तेर सध्या ३५ होय छे. २ 'जेणं' रासी चक्करण' अवहारेण अवहीरमाणे चउपज्जवसिए' ने राशीभांथी थारना विभाग उरवाथी हेवटे यार जये છે તથા 'जेण ं तस्स रासिह अवहारसमया दावरजुम्मा सेत्त दाबरजुम्म कडजुम्मे' ? राशिना अपहार समय द्वापरयुग्भ है, सेवी ते राशि द्वापर શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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