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________________ % 3D ममेयचन्द्रिका टीका श०२९ उ.१९०१ पापकर्मसंपादननिष्ठापननिरूपणम् २३ टीका--'जीवा णं भते' जीवाः खलु भदन्त ! 'वं कम्म' पापम्-अशुभ कम 'किं समायं पट्टविमु समकम्-बहवो जीवाः युगपदित्यर्थः मास्थापयन्प्रस्थापितवन्तः प्रथमतया वेदयितु मारब्धवन्तः किम् तथा-'समायं निविसु' समकमेव न्यस्थापयन्-निष्ठापितवन्तः नाशितवन्तः पापकर्मणो नाशमकुर्वन इत्यर्थः, इति प्रथमो भगः१, तथा 'समायं पटविसु विसमायं निर्विसु २१ समकं-युगपदेव अनेके जीवाः प्रास्थापयन् प्रस्थापितवन्तः युगपदनेकेन्यस्थापयन-निष्ठापितवन्त इति द्वितीयो भङ्गा२, तथा 'सिमाय पट्टविसु समायं निट . २९ वां शतक के पहला उद्देशक पापकर्म आदि की वक्तव्यता से अनुगत २८ वें शतक की व्या. ख्या करके अब क्रम प्राप्त २९ वां शतक प्रारम्भ होता है, यहां पर भी पूर्वोक्त जैसे ११ उद्देशक हैं। इनमें से आदि के उद्देशक का 'जीवाण भंते ! पावं कम्मं किं समायं पट्टविसु'-इत्यादि टीकार्थ-गौतमस्वामीने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-'जीवाणं भंते ! पावं कम्म' हे भन्दत ! अनेक जीव जो पापकर्म को भोगते हैं और नष्ट करते हैं सो क्या वे उस पापकर्म को 'कि समायं पट्टविंसु' भोगने का प्रारम्भ एक काल में करते हैं और 'समायं निर्विसु' एक ही काल में ये उसका विनाश करते हैं ? अथवा-वे उस 'समायं पट्टविसु विसमायं निट्टविंसु२' पापकर्म को भोगने का प्रारम्भ एक काल में करते हैं और ઓગણત્રીસમા શતકને પ્રારંભ-- पर शी. પાપકર્મ વિગેરે ના કથનના સંબંધમાં અઠયાવીસમા શતકનું કથન કરીને હવે ક્રમથી આવેલ આ ઓગણત્રીસમા શતકને પ્રારંભ કરવામાં આવે છે. આ ઓગણત્રીસમા શતકમાં પણ પહેલા કહ્યા પ્રમાણે અગીયાર ઉદેશાઓ ह्या छे. तभा पडे देशानुपसूत्र नीय प्रमाणे छे.-'जीवा गं भाते पाव कम्म कि समायं पढवि'सु' इत्यादि टी---गौतमवाभीमे प्रभुश्रीने ये ५७युछे :--'जीवा ण भते पाव कम्म" उससवन अने व या पापभाव छ, भने तेना क्षय ४२ छ. शुतो ५.५मन 'समायौं पट्टविंसु' सोमवाना प्रारभ 31 समयमा रे छे. १ भने 'समाय निविसु' से समयमा तमा नाविना ४२ छे ११ १२१-ते-थे। 'समाय पदविंसु विसमाय निदृषि सु' પાપકર્મને ભેગવવાને પ્રારંભ એક સમયમાં કરે છે? અને તેને વિનાશ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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