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________________ -- प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ अ.श.१ २०७ दक्षिणचरमान्ते उत्पातनि० ४२१ पश्चिमे एवं चरमान्ते उत्पद्यमानानां यथा स्वस्थाने उपपातः कथित स्तथैव एकसामयिक विग्रहादारभ्य यावत् चतु:सामयिको विग्रहो व्यावर्णनीय इति । 'उत्तरिल्ले उववज्जमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नस्थि सेसं तहेव' पश्चिमे समवहताना मुत्तरे लोकचरमान्ते समुत्पधमानानामेकसामयिको विग्रहो नास्तिन भवति, द्वि त्रि चतु:सामयिकविग्रहास्तु सन्त्येव, शेषम्-उपपातप्रकारादिकं सर्वे तु पूर्ववदेव ज्ञातव्यमिति । 'पुरस्थिमिल्ले जहा सहाणे' पाश्चात्ये समवहतानां पौरस्त्ये पूर्वचरमान्तविषये उत्पद्यमानानां यथा-स्वस्थाने समुद्घातो. पपातयोरेक स्थानरूपे कथितं तथैव इहापि सर्वं ज्ञातव्यमिति। 'दाहिणिल्ले करके पश्चिम ही चरमान्त में उत्पन्न हुए पृथिवीकायिक आदि जीवों के सम्बन्ध में जैसा उपपात स्वस्थान में कहा गया है उसी प्रकार से वह वहाँ एक समयवाला यावत् चार समयवाला होता है ऐसा कह लेना चाहिये । 'उत्तरिल्ले उववज्जमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नस्वि-सेसं तहेव' पश्चिम दिशा से समवहत हुए जीवों के उत्सर घरमान्त में उपपात होने पर वहां उनके उपपात में एकसमयवाला विग्रह नहीं होता है किन्तु दो समयवाला यावत् चार समयवाला विग्रह होता है। बाकीका और सष उपपात प्रकार आदि का कथन पूर्वोक्त जैसा ही है। 'पुरथिमिल्ले जहा सट्टाणे' पश्चिम चरमान्त में समवहत हुए जीवों के पूर्वचरमान्त में उत्पन्न होने पर वहां स्वस्थान के उत्पाद के जैसा उत्पाद कहना चाहिये । अर्थात् वे जीव वहाँ एकसमयवाले विग्रह से भी उत्पन्न होते हैं दो समयवाले विग्रह से भी उत्पन्न होते हैं तीनसमથયેલા પૃથ્વીકાયિક વિગેરે જીવેના સમ્બન્ધમાં સ્વાસ્થાનમાં જે રીતે ઉપપાત કહેલ છે, એ જ રીતે તે ત્યાં એક સમયવાળે યાવત્ ચાર સમયવાળે હેય छे, तेभ सभा'. 'उत्तरिल्ले उववज्जमाणाण एगममइओ विगहो नथि सेस तहेव' पश्चिम दिशामा समुद्धात ४२॥ वानी ५५ात उत्तर यरमान्तमा થાય ત્યારે ત્યાં તેના ઉપપાતમાં એક સમયવાળી વિગ્રહગતિ હેતી નથી. પરંતુ બે સમયવાળી યાવત્ ચાર સમયવાળી વિગ્રહગતિ હોય છે. બાકીનું ઉપપાત विगेरे सघणु थन ५i sal प्रमाणेनु छे. 'पुर थिमिल्ले जहा सट्राणे' પશ્ચિમ ચરમાન્તમાં સમુદ્દઘાત કરેલા જીવો પૂર્વ ચરમામાં ઉત્પન્ન થાય ત્યારે ત્યાં સ્વસ્થાનના ઉત્પાદના કથન પ્રમાણે ઉપપદ કહેવો જોઈએ. અર્થાત તે જીવે ત્યાં એક સમયવાળી વિગ્રહગતિથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે, બે સમય વાળી વિગ્રહગતિથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે, ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહગતિથી પણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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