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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०३४ अ. श०१ ०५ विग्रहगत्योत्पातनिरूपणम् ३७९ तत्केनार्थेन मदन्त ! एवमुच्यते, यद् द्विसामयिकेन वा त्रिसामायिकेन वा विग्रहेणोत्पद्येतेति अवान्तरप्रश्नः । भगवानाह - ' एवं खलु' इत्यादि । ' एवं खलु गोयमा ! मए सत्तसेढीओ पन्नत्ताओ' एवं खलु हे गौतम ! मया सप्तश्रेणयः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा ' तद्यथा - 'उज्जुआगया जान अद्धचक्कवाला' ऋज्वायता यात्र अर्द्धचक्रबाला, अत्र यावत्पदेन एकतो वक्रा, द्विघाती वक्रा, एकतः खा, द्विघातः खा चक्रवाला इत्येतासां श्रेणीनां संग्रहो भवतीति । तत्र 'एकओ वंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमणं विग्ग हेणं उज्जेज्जा एकतोवक्रया श्रेण्या समुत्पद्यमा नोsपर्याप्त सूक्ष्मपृथिकायिको द्विसामयिकेन विग्रहेण समुत्पद्येत, दुहओ वंकाए करके समय क्षेत्र में अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूपसे उत्पन्न होने के योग्य हुआ है वहां दो समपवाले विग्रह से अथवा तीन समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है । ' से केणट्टेणं' हे भदन्त । ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वह वहां दो समयवाले विग्रह से अथवा तीन समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है ? इस अवान्तर प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं- 'एवं खलु गोयमा ! मए सप्तसेदीओ पन्नसाओ' हे गौतम! मैंने सात श्रेणियां कही है- 'तं जहा ' जो इस प्रकार से हैं - 'उज्जुनाया जाव अद्धचक्कवाला' ऋज्वायता, यावत् अर्द्धचक्र वाला' यहां यावत्पदसे 'एकतो वक्रा द्विधातो वक्रा एकतः खा, विधातः खा चक्रवाला' इन अवशिष्ट श्रेणियों का ग्रहण हुआ है । इनमें जो 'एकओ बकाए सेटीए उवज्जमाणे दुसमइएर्ण विग्गहेणं उज्जेज्जा' एकतः वक्रा श्रेणिसे गमन करता हुआ अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक , મરણુસમુદ્ધાત કરીને સમયક્ષેત્રમાં અપર્યાપ્ત ખાદરતેજસ્કાયિકપણાથી ઉત્પન્ન થવાને ચેાગ્ય થયેલ હાય તે તે ત્યાં એ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી અથવા ऋणु समयवाणी विश्रड गतिथी उत्पन्न थाय छे. 'से केणद्वेणं' हे भगवन આપ એવુ શા કારણથી કહેા છે કે-તે ત્યાં એ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી ઉત્પન થાય છે? આ અવાન્તર પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી हे छे - एवं खलु गोयमा । मए सत्त सेढीओ पम्नत्ताओ' हे गौतम! में सात श्रेणी व छे. 'त' जहा' ते भा प्रभारी छे. 'उज्जुआयया जाव अचक्कवाला' मन्त्रायता, भेउता बडा, द्विधातो वडा, अतः या, द्विधातः मा, यत्राता भने अर्धवाला मा श्रेषयोभां ने 'एकओ वंकाए सेढीए उजवज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा' એકત વકા શ્રેણીથી ગમન કરીને અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક જીવ ઉત્પત્તિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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