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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ अ. श.१ २०३ श प्रभाश्रितैकेन्द्रियाणामुत्पातः ३६५ वि बायरतेउकाइएस' एवम् पर्याप्तवादरतेजस्कायिकेषु यथा-अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकस्य द्विसामयिकेन वा त्रिसामयिकेन वा विग्रहेणोत्पाद: कथितो न तु एकसामयिकेन तथैव पर्याप्तेषु अपि बादरतेनस्कायिकेषु शर्करापमा पूर्व चरमान्तात् शर्करामभापश्चिमचरमान्ते आगत्य समुत्पत्तुं योग्यस्य अपर्याप्त सक्षम पृथिवी कायिकस्य द्विसामगिकेन वा त्रिसामयिकेन वा विग्रहेण समुत्पादो ज्ञातव्य इति । 'सेसं जहा-रयणप्पभाए' शेषम् वायुकायिकादिसम्बन्धे यथा-येन प्रकारेण रत्नप्रमायां कथितं तथैव अत्रापि ज्ञातव्यम् इति । 'जे वि बायरतेउकाइया अपज्जत्तगाय' येऽपि बादरतजस्कायिका अपर्याप्तकाश्च पर्याप्तकाश्च, 'समरखेत्ते समोहणित्ता दोच्चाए पुढवोए पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते' समयक्षेत्रे होता है । 'एवं पज्जत्तपसु वि बायरते उकाइएस्तु' जिस प्रकार अपर्याप्त बादरतेजस्कायिकों में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीयायिक का दो समयवाले विग्रह से अथवा तीनसमयकाले विग्रह से उत्पाद कहा गया है-एक समयवाले विग्रह से नहीं उसी प्रकार से पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों में शर्कराप्रभा के पूर्व चरमान्त से समयक्षेत्र में आकर के उत्पत्ति के योग्य हुए अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक का दो समयवाले विग्रह से अथवा तीन समयवाले विग्रह से उत्पाद जानना चाहिये 'सेसं जहा रयणप्पभाए' जिस प्रकार से शेष वायुकायिक आदि के संबंध में जैसा रत्नप्रभा में कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी जानमा चाहिये जे वि पायरते उकाइया अपज्जस्तगाय पज्जत्तगाय समयखेत्ते समोहणित्ता दोच्चाए पुढवीए पच्चस्थिमिल्ले चरिमंत' और जो पर्या. अथवा १२ समयवाणी विड गतिथी अपन थाय छे. 'एव पजत्तएस वि बायरते उकाइएसु' ने शते ५५त्ति मारते४२४॥यमा अतिसूक्ष्म તેજસ્કાયિકની બે સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી અથવા ત્રણ સમવાળી વિગ્રહ ગતિથી ઉત્પત્તિ કહેવ છે.-એક સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી નહીં એજ રીતે પર્યાપ્ત બાદરતેજસ્કાયિકમાં શર્કરપ્રભા પૃથ્વીના પૂર્વચરમાન્તથી શર્કરપ્રભાના પશ્ચિમચરમાન્તમાં આવીને ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય થયેલા અપર્યાપ્ત સૂમિ પ્રવીકાવિકેને ઉતપાત બે સમયવાળી વિગ્રહગતિથી અથવા ત્રણ સમયવાળી विड गतिथी सभा.. 'सेस जहा रयणप्पभाए' ने -त२ प्रश्नोत्तरे। વિગેરે રત્નપ્રભાના પ્રકરણમાં કહ્યા છે, એ જ રીતે અહિયાં પણ સમજવા. 'जे वि वायर अपज्जत्तगा य समयखेत्ते समोहणित्ता दोच्चाए पुढवीए पच्चत्थि. मिल्ले चरिमंते' यति भने अपर्याप्त पा४२ तायि४ २ ०५ समय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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