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________________ ३०६ भगवतीसूत्रे टीका-'कइनिहा गं भंते ! अभवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता' कतिविधाः खलु भदन्त ! अभवसिद्धिका एकेन्द्रियाः प्रज्ञता:-कयिता ? 'गोयमा' पंचविडा अमवसिद्धिया एगिदिया पन्नत्ता' हे गौतम ! अभवसिद्धिका एकेन्द्रियाः पंचविधा प्राप्ताः, 'तं जहा' सघथा-'पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया' प्रथिवी. জাখিস্কা আনঅবিঙ্কাঙ্কিা অম যাবইল অক্কাযিঙ্কা লাশিক্ষা पायुकायिका एतेषां संग्रहो भवति । तथा च पृथिवीकायिकाऽकायिकतेज कायिकवायुकायिकवनस्पतिकायिकभेदात् पञ्चपकारका अभवसिद्धिकै केन्द्रिया भवन्ति । ‘एवं जहेव भवसिद्धियसय भणियं एवं अभवसिद्धियसयं विभाणिय' एवं यथैव भवसिद्धिकशतं भणितं तथैव अमवसिद्धिकशतमपि भणितव्यम् । किन्तु भवसिद्धिकशतापेक्षया यद् वैलक्षण्यं तदिह दर्शयन्नाह-'नवरं' इत्यादि। टीकार्थ-हे भदन्त ! एकेन्द्रिय अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? 'गोयमा! चविहा अभवसिद्धिया एगिदिया पता' हे गौतम ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। 'तं जहा' वे ये हैं-'पुढ बीकाइया जाव वणस्तइकाइया' पृथिवीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, यहां यावत् पद से 'अपकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक इनका ग्रहण किया गया है तथा-च पृथिवीकायिक अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, और वनस्पतिकायिक के भेद से अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के होते हैं । 'एवं जहेव' भवसिद्धिय सयं भणिय एवं अभवसिद्धियमय वि भाणियवं' जैसा भवसिद्धिक शतक कहा गया है उसी प्रकार से अभवसिद्धिक शतक भी कहना चाहिये किन्तु उसकी अपेक्षा जो इस शतक में भिन्नता ટીકર્થ—હે ભગવન અભયસિદ્ધિક એકેન્દ્રિય જ કેટલા પ્રકારના ४ामा मा०या छ ? 20 प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! पचविहा अभवसिद्धिया एगिदिया पण्णचा' गौतम ! AMAसिद्धि मेन्द्रि ७१ पांय ४॥२॥ ४ामा मा०या छ. 'त' जहा' ते मा प्रमाणे छे. 'पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया' यि यावत् १९५ति४ि यात्५४था यि तेx. કાયિક વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિકનું ગ્રહણ થયેલ છે. એટલે કેપૃવીકાયિક અપુકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિકના ભેદથી मसिद्धि मेन्द्रिय व पाय प्रा२न डाय छ 'एवजहेव भवसिद्धिय सय भणिय अभवसिद्धियसय वि भाणियटव' सिद्धिशतमा प्रभार अपामा આવેલ છે, એ જ પ્રમાણે અાવસિદ્ધિક શતક પણ સમજી લેવું. પરંતુ તે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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