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________________ २९२ भगवतीसूत्रे वनस्पतकायिकाः, यावत्पदेन अकायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, एतेषां संप्रदो भवति । तथा च पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिभेदेन भवसिद्धिका एकेन्द्रियजीवाः पश्चप्रकारका भवन्तीति । 'भेश्रो चउकाओ जाव वणस्सइकाइयत्ति' भेदश्चतुष्को यावद्वनस्पतिकायिक इति । यथा-औधिके प्रथमशते एतेषा मवान्नरश्वतुः प्रकारको भेदः सूक्ष्मवादराऽपर्याप्तपर्याप्त रूपः कथित स्तथैव भवसिद्धिक पञ्चमशतेऽपि वक्तव्यः, 'भवसिद्धिय अपज्जत्त सुहुमपुढवीकाइया णं भंते ! का कम्प्रपगडीओ पन्नत्ताओं' भवसिद्धिकाऽपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकजीवाना खल भदन्त ! कति कर्मप्रकृतयो भवन्ति ? इति प्रश्नः । उत्तरमाह-एवं एएणं' इत्यादि, 'एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लग एगिदियसयं तहेव भवसिदिय काइया' पृथिवीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, यहां यावत् पद से 'अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक' इनका ग्रहण हुआ है । तथा च-पृथिवीकायिक, अपकायिक, तेजस्कायिक वायुकायिक, और धनस्पतिकायिक के भेद से भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के होते हैं। 'भेश्रो चउकओ जाव वणस्सइकाइयत्ति' जिस प्रकार से औधिक प्रथम शतक में इनके चार भेद-सूक्ष्म, बादर, अपर्याप्त, पर्याप्त रूप से कहा है भेद् भवसिद्धिक पञ्चम शतक में भी कहना चाहिये। ___'भवसिद्धिय अपज्जत्त सुहमपुढीकाहया णं भंते ! कहकम्म पगडीओ पन्नत्साओ' हे भदन्त ! भवसिद्धिक अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवी. कायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियों का सत्व कहा गया है? 'एवं एएणं अभिलावेण जहेव पढमिल्लग एगिदियसयं तहेव जाव वणस्सइ काइया' वी43 यावत् वनस्पति यि मलियां यात्५४थी અકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક, અને વનસપતિકાયિક ગ્રહણ કરાયા છે. તથા પૃથ્વીકાવિક, અકાયિક, તેજસ્કાયિક વાયુકાયિક અને વનસ્પતિ કાયિકના ભેદથી ભવસિદ્ધિક એકેન્દ્રિય જીવો પાંચ પ્રકારના હોય છે. _ 'भेओ चउक्कओं जाव वणस्सइकाइयत्ति' रे प्रमाणे मोबि४-पडेट। શતકમાં તેઓના ચાર ભેદ એટલે કે-સૂમ, બાદર, અપર્યાપ્તક અને પયા પ્તક એ પ્રમાણેને ચાર ભેદ કહ્યા છે, તે જ પ્રમાણે એ ચાર ભેદે આ भवसिद्धि पांयमा शतमा ५ वा नसे. 'भवसिद्धिय अपजत्त पढवीकाइयाण भंते ! कइ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओं मन मसिद्ध अपर्याप्त सूक्ष्म ५वी४ि वाने ही प्रतिया जाय छ १ 'एव एएण अभिलावण जहेव पढमिल्लग एगिदियसयौं तहेव भवसिद्धियसयपि भाणियब्य" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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