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भगवतीसूत्रे 'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' अष्टेति-अष्टप्रकारकाः कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः कथिताः । 'तं जहा' तद्यथा-'नाणावरणिज्जंजाव-अंतराइयं' शामावरणीयं यावदान्तरायिकम्, यावत्पदेन दर्शनावरणीय-वेदनीय-मोहनीयनाम-गोत्राणां षण्णां कर्मप्रकृतीनां ग्रहणं भवति । 'अणंतरोवानगवायर पुढवीकाइयाणं भंते !' अनन्तरोपपत्रक वादरपृथिवीकायिकजीवानां भदन्त ! 'कइ कम्म पगडीओ पनत्ताओ' कति कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः ? इति प्रश्नः ? । भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' अष्ट कर्म प्रकृतयः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा-'नाणावरणिज्नं जाव-अंतराइयं ज्ञानावरणीय यावदान्तरायिकम् । यावत्पदेन दर्शनावरणीय-वेदनीय-मोहनीय-आयु-नामगोत्राणां-संग्रहो भवतीति । 'एवं जाव-अणंतरोववन्नगवायरवणस्सइकाइयाणति' प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! अट्ट कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' हे गौतम ! उनके आठ कर्म प्रकृतियां कही गई हैं ? 'तौं जहा' जो इस प्रकार से है-'माणावरणिज्जं जाव अंतराइय' ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराधिक यहां यावत् पद से २ 'दर्शनाधरणीय वेदनीय ३ मोहनीय ४ आयु ५ नाम ६ और गोत्र ७ इन छ कर्मप्रकृतियो का ग्रहण हुआ है। 'अणंत. रोषवन्नगवायर पुढवीकाइयाणं भंते ! हे भदन्त ! अनन्तरोपपन्नक चादर पृथिवीकायिक जीवों के कई कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ कितनी कर्म प्रकृतियां कही गई हैं ? 'गोयमा ! हे गौतम ! 'अट्ठ कम्मपगडीओ' आठ कर्म प्रकृतियां कही गई हैं । 'तं जहा' जैसे 'नाणाधरणिज्ज जाव अंतराइय" ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायिक यहां पर भी यावत् पद से 'दर्शनावरणीय २ वेदनीय ३ मोहनीय ४ आयु ५ नाम, ६ और गोत्र ७ इन छह कर्म प्रकृतियों का ग्रहण हुआ है । 'एवं जाव अणं. 'गोयमा ! अट्ट कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' गौतम ताने मार भ प्रतिया अहवामा मावस छे. 'त' जहा' ते माप्रमाणे छ.
'नोणावरणिज जाव अंतराइयं' ज्ञानावरणीय यावत् भतराय यात् પદથી દર્શન વરણીય, મોહનીય, વેદનીય, નામ, શેત્ર, અને આયુષ્ય આ
प्रतिया अखए ४ . 'अणंतरोक्वन्नगा बायर पुढवीकाइयाणं भाते ! अमापन मनत५पन्न मा४२ पृथ्वी४ि वान 'कइ कम्मपगडीओ पन्नताओ' teी म प्रतियो ४३वाम मावी छ । उत्तरमा प्रभुश्री ७
-'गोयमा! 3 गौतम ! 'अटुकम्मपगडीओ पन्नत्ताओ' 28 भ प्रतिय। वामां आवे छे. 'तौं जहा' ते या प्रमाणे छे. 'नाणावरणिज जाव अंतराइय' સાનાવરણીય યાવત્ દર્શનાવરણીય, મોહનીય, વેદનીય, નામ ગેત્ર અને આણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭