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________________ २२० भगवतीस्त्रे त्रयोदशादारभ्य षोडषान्ता उद्देशकाः ‘एवं सम्पदिहि वि लेस्सासंजुत्तेहि चतारि उदेसगा कायना' एवं भवामवसिद्धिकनारकवदेव सम्यग्दृष्टिभिरपि नारकैः कृष्ण-नील कापोतलेश्यासंयुक्तैः चत्वार उद्देशकाः कर्तव्याः। सम्यग्दृष्टिकक्षुल्लककृतयुग्मनारकाः खलु भदन्त ! कुत उत्पधन्ते ? कृष्णलेश्य सम्यग्दृष्टि क्षुल्लककृतयुग्मनारकाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते २, नीळलेश्य सम्यग्दृष्टि नारकाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते ३, कापोतलेश्य सम्यग्दृष्टिनारकाः कुत उत्पद्यन्ते ४, तेरहवें उद्देशक से सोलहवें पर्यन्त के उद्देशक का कथन 'एवं सम्मदिट्ठी वि लेस्सा संजुत्तेहि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा' भवसिदाधिक, एवं अभवसिद्धिक नारक के जैसे कृष्ण, नील कापोतलेल्या संयुक्त सम्यग्दृष्टि नारकों को लेकर भी चार उद्देशक कहना चाहिये-जैसे हे भदन्त ! क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित सम्यग्दृष्टिक नारक किस स्थान विशेष से आकर के नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि हे भदन्त ! कृष्णलेश्यावाले क्षुल्लककृतयुग्म राशिप्रमित सम्या दृष्टि नारक किस स्थान विशेष से आकर के नरकावास में उत्पन्न होते हैं १२ । इत्यादि नीललेश्यावाले क्षुल्लककृतयुग्म राशिप्रमित सम्यदृष्टिक नारक हे भदन्त । किस स्थान विशेष से आकर के नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि ३ कापोतलेश्यावाले क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित सम्यग्दृष्टि नारक हे भदन्त ! किस स्थान विशेष से आकर नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि ४ इस क्रम से ये चार उद्देशक जानना चाहिये। 'नवरं सम्मदिदि पढमबितिएसु वि दोसु वि उद्देसएसु તેરમા ઉદેશાથી સોળમા સુધીના ઉદ્દેશાને પ્રારંભ– 'एव सम्मदिद्विहिं वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा' या ટીકાઈ–ભવસિદ્ધિક નારકાના કથન પ્રમાણે કૃષ્ણ નીલ, કાપતસ્યાવાળા સમ્યગૃષ્ટિ નારકેને ઉદ્દેશીને ચાર ઉદ્દેશાઓ કહેવા જોઈએ, જેમ કેહે ભગવન કણલેશ્યાવાળા ભુલકકૃતયુમ્મરાશિ પ્રમિત સમ્યગદૃષ્ટિવાળા નારકે ક્યા સ્થાન વિશેષથી આવીને નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? ૨ નીલલેશ્યાવાળા મુલકૂતયુમ રાશિપ્રમિત સમ્યક દષ્ટિવાળા નારકે કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને નારકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? 3 કાપતલેશ્યાવાળા ક્ષુલ્લક કૃતયુગ્મ રાશિપ્રતિસમ્યગ્દષ્ટિવાળા નારકે કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે? ૪ भया यार शाय। सम से.. "नवर' सम्मदिट्टि पहमबीतिए दो શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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