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________________ - भगवतीने भगवन्तं यन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्थित्वा संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरतीति । 'एए एकारस वि उद्देसगा' एते एकादशापि उद्देशकाः सन्तीति ।मु०१। ॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-मसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापकमविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक, वादिमानमर्दक-श्रीशाहच्छत्रपति कोल्हापुरराजमदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बाळब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलालवतिविरचितायां श्री “भग वतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिकाख्यायांव्याख्यायां त्रिंशत्तमें शतके चतुर्थों. देशकः समाप्तः॥३०-४॥ इति त्रिंशत्तमं समवसरणशतं समाप्तम् ॥३०॥ वन्दना नमस्कार कर फिर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये 'एए एक्कारस उद्देसगा' इस प्रकार से ११ उद्देशक पर्यन्त के उद्देशकों समजलेने चाहिए ॥सू०१॥ जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराजकृत "भगवतीसूत्र" की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके तीसवें शतकका ॥चौथा उद्देशक समाप्त ॥ ३०-१॥ ॥३० वां शतक समाप्त ।। या पोताना स्थान५२ मिरासमान था. 'एए एक्कारस उद्देषगा' मा रीते અગિયાર ઉદ્દેશાઓ કહ્યા છે. સૂત્રના જનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલ લજી મહારાજકૃત “ભગવતીસૂત્ર”ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના ત્રીસમા શતકને ચે ઉદ્દેશ સમાપ્ત ૩૦-કા ॥त्रीसभुशत समाप्त ॥30-४॥ y શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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