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________________ १३४ भगवतीसूत्रे ॥अथ द्वितीयोदेशकः प्रारभ्यते ॥ प्रथमोद्देशकं निरूप्य क्रमप्राप्त द्वितीयोदेशकं निरूपयन्नाह 'अणतरोवचन्न गाणं' इत्यादि। मूलम्-अणंतरोववन्नगाणं भंते ! नेरइया किं किरियावाई पुच्छा, गोयमा ! किरियावाई वि जाव वेणइयवाई वि। सले. स्सा णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावाई. एवं चेव एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इह वि भाणियव्वा । नवरं जं जस्स अस्थि अणंतरोववन्नगाणं नेरइयाणं तं तस्स भाणियव्वं । एवं सव्व जीवाणं जाव वेमाणियाणं। नवरं अणंतरोववन्नगाणं जं जहिं अत्थि तं तहिं भाणियवं । किरियावाई णं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति, पुच्छा, गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियउयं नो मणुस्साउयं नो देवाउयं पकरेंति। एवं अकिरियावाई वि वेणइयवाई वि अन्नाणियवाई वि।सलेस्सा णं भंते! किरियावाई अणंतरोववन्नगा नेरइया कि नेरइयाउयं पुच्छा, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकति जाव नो देवाउयं पकरेंति । एवं जाव वेमाणिया । एवं सव्वट्राणेसु वि अणंतरोववन्नगा नेरइया न किंचि वि आउयं पकरेंति जाव अणागारोवउत्तत्ति । एवं जाव वेमाणिया । नवरं जं जस्त अस्थि तं तस्स भाणियव्वं । किरियावाई गं भंते ! अणंतरोववन्नगा नेरइया कि भवसिद्धिया अभवसिद्धिया ? गोयमा ! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया। अकिरियावाई गं पुच्छा, गोयमा! भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि, एवं अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। सलेस्सा णं भंते ! किरियावाई अणंतरोववन्नगा नेरइया किं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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