SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 962
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४८ भगवतीसूत्र किं सप्रदेशाः अपदेशाः १ गौतम ! सप्रदेशा अपि, अप्रदेशा अपि, एवं यावत्वनस्पतिकायिकाः, शेषाः यथा नैरयिकास्तथा, यावत्-सिद्धाः । आहारकाणां जीव-केन्द्रियवर्जनिकभङ्गः । अनाहारकाणां जीवैकेन्द्रियवर्जाः षड्भङ्गा एवं भणिहित हैं और कोई एक नारक जीव प्रदेशरहित हैं अथवा-कितनेक नारक जीव प्रदेशसहित हैं और कितनेक नारक जीव प्रदेशरहित हैं। इसी तरह असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये। (पुढवीकाइया णं भंते ! किं सपएसा अपएसा) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या प्रदेशसहित हैं कि प्रदेशरहित हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (सपएसा वि अपएसा वि) पृथिवीकायिक जीव प्रदेशसहित भी हैं और प्रदेशरहित भी हैं। ( एवं जाव वणस्सइकाइया सेसा जहा नेरइया तहा जाब सिद्धा ) इसी तरह से यावत् वनस्पतिकायिक तक के जीवों के विषय में जानना चाहिये। जिस तरह से नैरयिक जीवों के विषय में कहा है, उसी तरह से सिद्धतक के बाकी के जीवों के विषय में जानना चाहिये । (आहारगाणं जीव-एगिदियवज्जो तियभंगो) जीव और एकेन्द्रियको छोड़कर आहारक जीवों के तीनभंग होते हैं । (अणाहारगाणं जीव-एगिदियवजा छभंगा एवं भाणियव्वा-सपएसा वा કેટલાક નારક છે પ્રદેશ સહિત છે અને કેઈક નારક જીવ પ્રદેશરહિત છે. અથવા કેટલાક નારક છે પ્રદેશ સહિત છે અને કેટલાક નારક છે પ્રદેશરહિત છે. એ જ પ્રમાણે અસુરકુમારથી લઈને સ્વનિતકુમાર પર્વતના વિષયમાં સમજવું. (पुढविकाइया ण' भंते ! कि सपएसा अपएसा ) 3 महन्त ! पृथियि છે શું પ્રદેશ સહિત છે કે પ્રદેશરહિત છે? (गोयमा !) गौतम ! ( सपएसा वि अपएसा वि) पृथ्वी थि: वे! प्रशसहित ५ छ भने प्रशडित ५५ छ. ( एवं जाव वणस्सइकाइया सेसा जहा नेरइया तहा, जाव सिद्धा) से ४ प्रमाणे वनस्पतिय सुधीना જીવો વિષે સમજવું જે પ્રમાણે નારક જીવના વિષયમાં કહ્યું છે, એ જ પ્રમાણે સિદ્ધજીવ પર્યન્તના બાકીના વિષયમાં પણ સમજવું. ( आहारगाण' जीव-एगिदियवज्जो तियभंगो) ७१ अने मेन्द्रिय सिवायना भाडा२४ वान an ( १६५) थाय छे. ( अणाहारगाण जीव-एगिदियवज्जा उन्भंगा एवं भाणियव्वा (१) सपएसा वा, (२) अपएसा बा, श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy