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________________ प्रमैrefद्रका टी० श० ६ उ० ३ ०५ कर्म स्थितिनिरूपणम् ९३१ 9 " न्धकत्वात् तद्भिन्नकाले तदबन्धकत्वात् । ' णोसुम - णोवायरे न बंधइ नो सूक्ष्म - नोवादशे हि सिद्धो जीवो न आयुष्कं कर्म वध्नाति । अथ चरमद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति - णाणावर णिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चरिमे बंध अचरिमे बंध ?' ज्ञानावरणीयं खलु कर्म किं चरमो बध्नाति ? किं वा अचरमो बध्नाति ? भगवानाह - ' गोयमा ! अट्ठ वि भयणाए ' हे गौतम! चरमः, अचरमश्च अष्टापि कर्मप्रकृती: भजनया कदाचिद् बध्नाति कदाचिन्न बध्नाति, अत्रेदं बोध्यम् - यस्य चरमो भवोभविष्यति सः चरमः, यस्य तु कदापि चरमो भवो न , अबंधकाल में - आयु का बंध नहीं करता है । ( णो सुहुम णो वायरे न बंधह ) सिद्ध जीव भी आयु का बंध नहीं करते हैं । अब चरमबंधद्वार को आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं कि णाणावर णिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चरिमे बंध, अचरिमे बंधइ ) हे भदन्त ! जब चरमद्वार की अपेक्षा से ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के बांधने का विचार किया जाता है तो कौन सा जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? क्या जो चरम जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? या जो अचरम जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? भगवान् इसका उत्तर देते हुए गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! ( अवि भयणाए ) चाहे चरम जीव हो चाहे अचरम जीव हो ये दोनों ही भजना से आठों भी कर्म प्रकृतियों का बंध करते हैं। जिस जीव का अन्तिम भव होगा वह चरम जीव है और जिसका कभी भी अन्तिम या गंधाणे आयुनो गंध उरता नथी. ( णोसुहुम णोत्रायरे न बधइ ) સિદ્ધ જીવ પણ આયુનેા બંધ કરતા નથી, હવે ગૌતમ સ્વામી ચરમઢારને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન पूछे छे ( णाणावरणिज्ज' णं मंते ! कम्मं किं चरिमे बधर, अचरिमे बबर १ ) હે ભદ્દન્ત ! ચરમદ્વારની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે તે જ્ઞાનાવરણીય આદિ કર્મી કાણુ બાંધે છે ? શુ' ચરમ જીવ ( અન્તિમ ભવ કરીને માક્ષે જનાર જી૧) જ્ઞાનાવરણીય કના બંધ કરે છે ? કે અચરમ જીવ જ્ઞાનાભરણીય કર્માંના બંધ કરે છે ? उत्तर–(गोयमा !) डे गौतम ! ( अट्ठ वि भयणाए ) थरम छ भने અચરમ જી આઠેક પ્રકૃતિયાના બંધ કરે છે એટલે કે તેઓ ઠે ક્રમ પ્રકૃતિયાના બંધ કરે છે પણ ખરાં અને નથી પણુ કરતા श्री भगवती सूत्र : ४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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