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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ उ० ३ सू०४ कम स्थितिनिरूपणम् ९१५ आयुर्बधनीतः, तदन्यकाले आयुर्न बध्नीतः इति भावः, 'उवरिल्ले नबंधई उपरितनः अन्तिमः नोपर्याप्तक नोअपर्याप्तक:-सिद्धो न बध्नाति । अथ भाषकविषयकबंध द्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति 'णाणावरणं भंते ! भासए बंधइ ? अभासए बंधइ ?' हे भदन्त ! ज्ञानावरणं कर्म किं भाषको बध्नाति ? अभाषको वा बध्नाति ? भगवान् उत्तरयति-'गोयमा ! दो वि भयणाए ' हे गौतम ! द्वावपि भाषकः भाषालब्धिमान तदन्यः अभाषकश्चेति द्वौ भजनया कदाचिद् ज्ञानावरणं कर्म बध्नीतः, कदाचिन्न बध्नीतः, तथाहि-सरागो भाषकः ज्ञानावरणीयं बध्नाति, वीतरागस्तु भाषको न बध्नाति, अभाषकः अयोगी सिद्धश्च न बध्नाति, पृथिव्यादयो विग्रहकाल में ही आयु कर्म का बंध करते हैं:-अबंधकाल में नहीं करते हैं। ( उवरिल्ले न बधइ ) जो जीव सिद्ध हैं-अर्थात् न पर्यातक हैं और न अपर्याप्तक है-वे आयु कर्म का बंध नहीं करते हैं। __ अब भाषाकविषयक पन्धद्वारको आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं कि-(णाणावरणिजं णं भंते ! कम्मं किं भासए बंधइ ? अभासए बंधइ ? ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या भाषक जीव बांधता है या अभाषक जीव बांधता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (दो वि भयणाए) ये दोनों हो जीव-अर्थात् जो भाषालब्धिवाला है ऐसा भाषक जीव और जा भाषक से भिन्न-अभाषकभाषालब्धिवाला नहीं है-ऐसे दोनों ही जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कदाचित् करते भी हैं और कदाचित् नहीं भी करते हैं। भाषक यदि सराग है तो वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध બાંધતા નથી. તેઓ આયુકર્મના બંધકાળે જ આયુકર્મને બંધ કરે છે, અબંધ आणे ४२ता नथी. “ उवरिल्ले न बधह" 2 0 सिद्ध डाय छ-मेटले हैं ન પર્યાપ્તક અને ન અપર્યાપ્તક હોય છે તેઓ આયુકમને બંધ કરતા નથી.
હવે ભાષકવિષયકબધિદ્વારને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને નીચે प्रमाणे प्रश्न पूछे छ-(णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं कि भासए बधइ ? अभासप बधइ १) महन्त ! ज्ञाना१२णीय भलाष ७३ मधे छ १ ३ मा જીવ બાંધે છે? ___ महावीर प्रभु तेने. 414 मयता ४ छ-" दो वि भयणाए " 3 ગૌતમ! ભાષાલબ્ધિવાળે ભાષક જીવ તથા ભાષાલધિ વિનાને અભાષિક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે પણ ખરે અને નથી પણ બાંધો. ભાષક જે સરાગ હોય તે તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મ અવશ્ય બાંધે છે, પણ જે તે
श्री. भगवती सूत्र:४