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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ उ० ३ ० ४ कर्मस्थितिनिरूपणम् ८९७ भगवानाह-'गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, हे गौतम ! स्त्री स्यात् कदाचित् बध्नाति, स्यात् कदाचिन्न बध्नाति, एवं तिनि वि भाणियव्या' एवं रीत्या अनया त्रयोऽपि स्यपि पुरुषोऽपि, नपुंसकोऽपि कदाचिद् बध्नाति, कदाचिन बध्नाति, इति रीत्या भणितव्याः वक्तव्याः ‘णोइत्थी-णोपुरिस-णोनपुंसओ न बंधइ' नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसको जीवः आयुष्यं कर्म न बध्नाति, अयंभावः-एकत्र भवे सकृदेव आयुषो बन्धात् स्त्रीपुरुषादित्रयं बन्धकाले बध्नाति, अबन्धकाले तु न बध्नाति अत एवोक्तम्-'सिय बंधइ सिय नो बंधइ ' इति । बंधह, पुच्छा ) हे भदन्त ! आयुकर्म का बंध कौन करता है? क्या स्त्री आयुकर्म का बंध करती है ? या पुरुष आयुकर्म का बंध करता है ? या नपुंसक आयुग्म का पंध करता है ? इस प्रकार से यह गौतम का प्रश्न है। इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (इत्थी सिय बंधह, सिय नो बंधह) स्त्री आयुकर्म का कदा. चित् बंध करती है और कदाचित् बंध नहीं भी करती है । ( एवं ति. नी वि भाणियव्वा ) इसी तरह से पुरुष और नपुंसक के विषय में भी जानना चाहिये । अर्थात् पुरुष आयुकर्मका बंध करता भी है और नहीं भी करता है-तथा नपुंसक भी आयुकर्म का बंध करता भी है और नहीं भी करता है। इसका भाव यह है कि एक भव में आयुकर्म जीव एक ही बार बांधता है अतः जय आयुकर्म के बंध होने का समय आताहैतब ही आयुकर्म का बंध जीव करता है। और जब बंध का समय नहीं होता-तब आयुकर्म का जीव बंध नहीं करता है । इसी भाव को लेकर पुच्छा ) हे महन्त ! सायुमनाम छ। ४२ छ१ शुं श्री सायुभनी બંધ કરે છે? કે પુરુષ આયુકર્મને બંધ કરે છે? કે નપુંસક તેને બંધ કરે છે?
આ પ્રકારના ગૌતમના પ્રશ્નનો જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે – " गोयमा ! " गौतम ! ( इत्थी सिय बधइ, सिय नो बंधइ) श्री मायु. भने। मध या२४ 3रे छ भने ध्या२४ नथा ५९ ४२ती, (एवं तिनी वि भाणियव्वा ) से प्रभा पुरुष भने नपुंसना विष ५५१ सभा. सटसे કે પુરુષ આયુકમને બંધ કરે છે પણ ખરો અને નથી પણ કરતે, નપુંસક પણ આયુકમને બંધ કયારેક કરે છે અને ક્યારેક કરતે નથી. તેનું તાત્પર્ય એ છે કે-એક ભવમાં આયુકર્મ જીવ એક જ વાર બાંધે છે, તેથી જ્યારે આયુકમને બંધ થવાનો સમય આવે છે ત્યારે જ જીવ આયુકર્મને બંધ કરે છે, અને જ્યારે બંધને સમય હોતું નથી ત્યારે જીવ मायुश्मनी मध ४२ नथी. मे आपने अनुरक्षीत “सिय बधइ, सिय
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श्री. भगवती सूत्र :४