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________________ प्रमैयचन्द्रिकाटीका० सू० ४ ० ६ उ० ३ कमस्थितिनरूपणम् ८८५ एवम् आयुष्क वर्जाः सप्तापि, आयुष्कम् अधस्तनौ द्वौ भजनया, उपरितनो न बध्नाति, ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कम किं चक्षुदर्शनी बध्नाति, अचक्षुदर्शनी बध्नाति अबधिदर्शनी बध्नाति, केवलदर्शनी बध्नाति ? गौतम ! अधस्तनास्त्रयो भजनया, उपरितनो न बध्नाति, एवं वेदनीयवर्नाः सप्ताऽपि, वेदनीयम् अध. करते हैं । (एवं आउगजाओ सत्तवि, आउगं हेटिल्ला दो भयणाए उवरिल्ले न बंधइ ) इसी तरह से आयुकर्म को छोड़कर बाकी के सात कमों के बंध करने के विषय में जानना चाहिये । आयु कर्म का बंध जो भवसिद्रिक है वे तथा जो अभवसिद्धिक हैं वे करते भी हैं और नहीं भी करते हैं। पर जो भवसिद्धिक हैं, नो अभवसिद्धिक हैं वे आयुकर्म का बंध नहीं करते हैं। (णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चक्खुदंसणी बंधइ, ? अचक्खुदंसणी बंधइ, ओहिदसणी बंधइ ? केवलदसणी बंधह ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या चक्षु दर्शनवाला जीव करता है ? या जो अचक्षुदर्शनवाला जीव है वह करता है ? या जो अवधिदर्शनवाला जीव है वह करता है ? या केवलदर्शनवाला जो जीव है वह करता है ? (हेछिल्ला तिणि भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ, एवं वेयणिज्जवज्जामो सत्त वि) हे गौतम ! नीचे के तीन-चक्षुदर्शनी, अचक्षु. दर्शनी और अवधिदर्शनी-ये तीन-ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते भी हैं, नहीं भी करते हैं । तथा ऊपर का जो केवलदर्शनजीव है वह ज्ञाना (एवं आउगवज्जाओ सत्त वि, आगं हेडिला दो भयणाए, उरिल्ले न बधइ) सायुभ सिवायन साते ना मध विष ५५५ । प्रभारी સમજવું. ભવસિદ્ધિક અને અભવસિદ્ધિક છે આયુકમને બંધ કરે પણ છે અને નથી પણ કરતા. પણ ને ભવસિદ્ધિક છે અને અભવસિદ્ધિક જ આયુકર્મને બંધ કરતા નથી. (णाणावरणिज्ज णं भते ! कम्म कि चक्खुदसणी बधइ ? अबक्खुदसणी बधइ ? ओहिदसणी बधइ १ केवलदसणी बधइ ? ) 3 महन्त ! शाना१२वीय કમને બંધ શું ચક્ષુ-દર્શનવાળે જીવ કરે છે? કે અચક્ષુ-દર્શનવાળે જીવ કરે છે? કે અવધિ-દર્શનવાળે જીવ કરે છે? કે કેવળ દશનવાળે જીવ કરે છે ? (हेविल्ला तिण्णि भयणाए, उबरिल्ले न बधइ, एबं बेयणिज्जवज्जाओ सत्त वि) હે ગૌતમ! ચક્ષુદર્શની, અચક્ષુદર્શની અને અવધિદર્શની જ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે પણ ખરાં અને નથી પણ કરતા. પરંતુ કેવલ દર્શનવાળે श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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