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________________ भगवतीस्त्रे छाया-यदा खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणार्धे वर्षाणां प्रथमः समयः प्रतिपद्यते तदा उत्तरार्धेऽपि वर्षाणां प्रथमः समयः प्रतिपद्यते, यदा उत्तरार्धेऽपि वर्षाणां प्रथमः समयः प्रतिपद्यते तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्य पश्चिमेऽनन्तरपुरस्कृतसमये वर्षाणां प्रथमः समयः प्रतिपद्यते ? हन्त, गौतम ! यदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणार्धे वर्षाणां प्रथमः समयः प्रतिपद्यते, ऋतुविशेष आदि की वक्तव्यता(जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ) इत्यादि । सूत्रार्थ-(जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणडे वासाणं पढमे समए पडिवजइ) हे भदन्त ! जब जम्बूद्वीप नामके मध्यजंबूद्वीप में दक्षि णार्ध में वर्षा-चतुर्मास का प्रथम समय आता है, (तयाणं उत्तरड़े वि वासाणं पढमे समए पडिवजइ) तब उत्तरार्ध में वर्षा-चतुर्मास का प्रथम समय आता है। (जया णं उत्तरड़े वि वासाणं पहमे समए पडि. वनइ) तो जब उत्तरार्ध में भी वर्षा का प्रथम समय आता है (तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरपब्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेणं अणंतरपुरक्खडे समयं सि वासाण पढमे समए पडिवजह ) तब जंबूद्वीप नामके मध्यमें मंदर पर्वत के पूर्वपश्चिम में अनंतरपुरस्कृत समय में अर्थात् अव्य. वहित समय में वर्षा का प्रथम समय होता है क्या ? (हंता, गोयमा ! जयाण जंबुद्दोवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणड़े वोसाणं पढमे समए *तु विशेष माहिनी १४तव्यता - 'जया ण भते ! जबुईवे दीवे" या6ि सूत्राथ-" जया णं भंते ! जबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाण पढमे समर पडिवज्जइ) 3 महन्त ! यारे भूदी५ नमना मध्य पूरी५i क्षिाधमा वर्षातुनी प्रथम समय मा छ-सेट प्रारम थाय छे." तया उतर इढे वि वासाण' पढमे समए पडिवजह" त्यारे उत्तरा, ५५ वर्षा. तुनी प्रारभ थाय छे, "जयाणं उतरइढे वि वासाण पढमे समए पडिवज्जइ" भने न्यारे उत्तरार्थमा ५ प्रारम थाय छे, (तयाण जंबुद्दीवे दीवे, मंदरप व्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेणं अणंतरपुरक्खडे समय सि पासाणं पढमे समए पडिवज्जइ ) त्यारे दीपन मह२ पतनी पूर्व मने पश्चिम दिशामा અનન્તર પુરસ્કૃત સમયમાં” (પહેલાના સમય કરતાં કેઈપણ પ્રકારના ફેરકાર વિનાના સમયમાં) ઉપરોક્ત સમયે જ વર્ષાઋતુને પ્રારંભ થાય છે? "हंता गोयमा ! जयाण जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पन्वयस्स दाहिणड्ढे वासाण पढमे श्री.भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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